यहां जानें, गुडी पड़वा से जुड़ी 5 परंपराएं और उनकी महत्ता
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि कहा जाता है। इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है। भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना इसी दिन की थी। इसीलिए विक्रम संवत् के नए साल का आरम्भ भी इसी दिन होता है। इसी दिन दुनिया में सबसे पहला सूर्योदय हुआ था। भगवान ने इस प्रतिपदा तिथि को सर्वोत्तम तिथि कहा था। इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिन भी कहते हैं। सृष्टि के पहला दिन गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है।
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‘गुड़ी’ का मतलब ‘विजय पताका’ होता है। मान्यता है कि इस दिन शालिवाहन नामक कुम्हार के पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों का निर्माण कर एक सेना बना दी थी और उस पर पानी छिड़ककर प्राण फूंक दिए थे। इसके बाद उस मिट्टी की सेना ने शक्तिशाली दुश्मनों को पछाड़ दिया था और विजय पा ली थी। इसी विजय के प्रतीक के रूप में ‘शालिवाहन शक’ की शुरुआत मानी गई है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि’ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘ग़ुड़ी पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है। आइए जानते हैं यहां गुडी पड़वा से जुड़ी पांच प्रमुख रस्में और उनकी महत्ता:
पवित्र स्नान
गुड़ी पड़वा या नव संवत्सर के दिन अभ्यंगस्नान किया जाता है। अभ्यंगस्नान यानी मांगलिक स्नान जिसमें शरीर को तेल मिश्रित उबटन लगाकर गुनगुने पानी से नहाया जाता है। स्नान के बाद शुद्ध एवं पवित्र होकर नए वस्त्र पहने जाते हैं। महाराष्ट्रीयन महिलाएं अपनी पारंपरिक पोशाक नौ गज की साड़ी पहनती है और पुरुष इस दिन कुर्ता पायजामा और लाल या केसरिया पगड़ी पहनते हैं।
पारंपरिक रंगोली
घर की महिलाएं पवित्र स्नान लेने के बाद सबसे पहले अपने घर के आंगन में रंगोली बनाती है। वे चावल के पाउडर, सिंदूर और हल्दी से रंगबिरंगी रंगोली बनाती है। आजकल लोग फूलों और मोमबत्तियों से भी आकर्षक रंगोली बनाते हैं। रंगोली बनाने का मकसद नकारात्मक ऊर्जाओं को निकालना और अच्छी किस्मत लाना है।
फूलों की सजावट
दिवाली या दशहरा की तरफ कोई भी त्योहार फूलों के बिना अधूरा है। गुडी पड़वा पर भी रंगबिरंगे फूल ब्रह्माजी को चढ़ाए जाते हैं। साथ ही घर के प्रवेश द्वारा को भी तरह तरह के फूलों से सजाया जाता है। फूल पवित्रता को दर्शाते हैं और इसकी खुश्बू सकारात्मक ऊर्जा फैलाती है।
गुडी
गुडी पड़वा पर घर के बाहर एक डंडे में पीतल का बर्तन उलटकर रखते हैं जिस पर सुबह की पहली किरण पड़ती है। इसे गहरे रंग ( विशेष रूप से लाल, पीले या केसरिया)की रेशमी की साड़ी व फूलों की माता से सजाया जाता है। इसे आम के पत्ते और नारियल से घर के बाहर उत्तोलक के रूप में टांगा जाता है। दरवाजे पर तनकर खड़ी गुडी यानी विजय पताका स्वाभिमान से जीने और जमीन पर लाठी की तरह गिरते ही साष्टांग दंडवत कर जिंदगी के उतार-चढ़ाव में बगैर टूटे उठने का संदेश देती है। गुडी को इस तरह से स्थापित करते हैं कि वह दूर से भी नजर आए। यह समृद्धि का प्रतीक है।
कुछ लोग छत्रपति शिवाजी महाराज की जीत के उपलक्ष्य में एक केसरिया झंडा भी फहराते हैं। शाम को एक जुलूस निकाला जाता है जिसमें लोग एकत्रित होते हैं और ग्रुप में नाचते हुए लोगों का मनोरंजन करते हैं।
प्रसाद
जहां अधिकांश भारतीय त्योहारों में प्रसाद के रूप में मीठा रहता है, वहीं गुडी पड़वा उन त्योहारों में से एक है जिसमें लोग नीम और गुड़ से अनूठी प्रिपरेशन बनाते हैं। इसका कड़वा-मीठा स्वाद जीवन की तरह है जिसमें सुख और दुख दोनों हैं।