गंगा की बेटी VS गंगा पुत्र

लखनऊ: अचानक गंगा की राजनीति आगे बढ़ चली है। कांग्रेस की चुनौती अपने खोए हुए जनधार को दोबारा वापस पाने की है और गंगा उसे सहायक लग रही है। लग रहा है जैसे गंगा ही कांग्रेस का उद्धार करेंगी। दूसरी ओर, मां गंगा ने बुलाया है, कहकर गुजरात से सीधे वाराणसी का किला फतह करने वाले नरेंद्र मोदी एक बार फिर से इसी धर्म नगरी से चुनाव मैदान में हैं। तो क्या ऐसे में बेटे की जगह अब बेटी को अपनाकर यूपी की राजनीति को बदलेगी मां गंगा, बता रहे हैं अखिलेश अखिल
क्या प्रियंका गांधी 2014 के गंगा पुत्र पीएम नरेंद्र मोदी को चुनौती देने जा रही हैं? क्या मां गंगा अब बेटे की जगह बेटी के जरिए अपने उद्धार का सपना देख रही है? सबसे बड़ी बात यह कि क्या इस बार फिर गंगा के जरिए ही यूपी की राजनीति को साधने का खेल जारी है? 2014 में पीएम मोदी ने खुद को गंगा का बेटा बताकर चुनाव लड़ा और अब 5 साल बाद चुनावी वक्त की सुई फिर से मां गंगा के इर्द-गिर्द ही घूमने लगी है। पिछले सप्ताह नाव में सवार प्रियंका चुनाव प्रचार करने निकलीं। प्रचार की शुरुआत के लिए प्रियंका ने अपने पैतृक शहर प्रयागराज को चुना और चुनौती देने के लिए मोदी की वाराणसी को। प्रयागराज से शुरू बोट यात्रा जब वाराणसी पहुंची, तो बहुत कुछ बदलता दिखा। कई सवाल उठते दिखे और राजनीति भी बदलती दिखी।
प्रियंका में उनकी दादी इंदिरा गांधी का अक्स देखा जाता है। लोगों का मानना है कि वह यूपी में कांग्रेस को पुनर्जीवित कर सकती हैं, लेकिन यह एक राय है। प्रियंका की अब तक कोई ऐसी राजनीतिक उपलब्धि नहीं रही है, जिससे यह मान लिया जाए कि वह इस चुनाव में चमत्कार कर सकती हैं। हालांकि प्रियंका के राजनीति में आने से यह जरूर हुआ है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं में एक नई ऊर्जा एवं उत्साह का संचार हुआ है। वे बड़ी से बड़ी लड़ाई लडऩे के लिए तैयार दिखने लगे हैं। यह बात और है कि प्रियंका की असली परीक्षा भाजपा के गढ़ पूर्वांचल में होनी है। इसी क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी और भाजपा की परंपरागत सीट गोरखपुर है। गोरखपुर योगी आदित्यनाथ की सीट रही है। पूर्वांचल की इन सीटों पर भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को खड़ा करना प्रियंका के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। कांग्रेस भी इन चुनौतियों को पहचानती है। शायद इसीलिए उसने प्रियंका को एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी दी है। प्रियंका किसान और महिलाओं से मिल रही हैं, साथ ही ग्रामीण इलाकों का दौरा कर रही हैं। इस दौरान वह मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना कर जनता के बीच कांग्रेस के लिए जगह बना रही हैं। प्रियंका का यह दौरा ग्रामीण समाज में कांग्रेस की जमीन तैयार करने के लिए है।
प्रयागराज में प्रियंका गांधी के चित्र वाले पोस्टर लगे हैं। इन पर लिखा है- ‘गंगा की बेटी जीतेगी यूपी।Ó कुछ इसी तरह के पोस्टर 2014 में भी लगे थे, जब कहा गया था कि मोदी गंगा पुत्र हैं। जबकि सच यही है कि ना मोदी गंगा पुत्र हैं और ना ही प्रियंका गंगा की बेटी। वह तो सोनिया गांधी की बेटी हैं।  हमारे पुराणों में भी गंगा की बेटी का कोई उल्लेख नहीं है, जबकि भीष्म पितामह गंगा के बेटे थे। गंगा ने स्त्री रूप में जब महाराज शांतनु से विवाह किया, तो शर्त रखी कि मुझे किसी बात के लिए टोकना मत। शांतनु ने शर्त मान ली। गंगा के एक के बाद एक 7 पुत्र हुए, जिन्हें गंगा ने जल में बहा दिया। जब आठवां पुत्र हुआ, तो शांतनु से रहा नहीं गया। उन्होंने गंगा से कहा, तुमने 7 बेटे बहा दिए, लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा। अब इस आठवें बेटे को छोड़ दो। इस पर गंगा ने कहा, ये मेरे बेटे सात वसु थे, जो मेरे लोक में चले गए। इस आठवें वसु को तुम संभालो। इसके बाद गंगा अंतध्र्यान हो गईं। शांतनु ने इस आठवें वसु का नाम गंगापुत्र भीष्म रखा। अब यदि कांग्रेसजन प्रियंका गांधी को गंगा की बेटी मानते हैं, तो यह उनकी आस्था का मामला है।
जैसे कि भाजपा वाले मोदी को गंगा पुत्र कहते रहे हैं। गंगा से कुछ नेताओं का विशेष लगाव होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के होने के बावजूद 2014 में वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़कर यूपी वाले बन गए थे। उन्होंने वाराणसी पहुंचने पर कहा था- मैं यहां नहीं आया, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है। उन्होंने गंगा से नाता जोड़ा, तो देश के पीएम बन गए। योगी आदित्यनाथ ने गंगा किनारे कुंभ का भव्य आयोजन कराया है। हर कोई गंगा मैया की कृपा चाहता है।  गंगा की कृपा हुई, तो चुनाव का भवसागर पार कर लेंगे। मानसिक रूप से किसी को भी गंगापुत्र या गंगापुत्री कहलाने का पूरा अधिकार है, क्योंकि मां गंगा सभी की है। सब पर उनकी कृपा है। लेकिन सबका यह भी कर्तव्य है कि मां गंगा अविरल बहती रहें। साफ रहें। जीवनदायिनी बनी रहें।
2014 में मोदी ने यही तो कहा था- अब गंगा निर्मल रहेगी। मोदी सत्ता में आ गए। गंगा पर काम शुरू हुए। गंगा रूपी उमा भारती को गंगा मंत्री बनाया गया, लेकिन गंगा की सफाई नहीं हो पाई। अरबों रुपए पिछले पांच साल में खर्च करने का दावा मोदी सरकार कर रही है, लेकिन गंगा वहीं है जहां पहले थी। गंगा की सफाई करने निकली उमा भारती गंगा मंत्रालय से रुखसत हो गईं, लेकिन गंगा मैली ही रही। इससे कुपित गंगा का मोह क्या अब कथित बेटे मोदी से खत्म हो चुका है? क्यों उसी गंगा की बात पर अब बेटी प्रियंका आगे बढ़ती जा रही है। शायद गंगा को उम्मीद है कि बेटी ही उसका उद्धार करेगी। मां और बेटी के रिश्ते को भला कौन नहीं जानता!
2014 के आम चुनाव में गंगा चुनाव प्रचार का केंद्र बन गई थी। नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जब भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई, तो सरकार की प्राथमिकता में गंगा भी दिखाई जाती थी। अब जबकि मोदी सरकार का कार्यकाल खत्म हो रहा है और नई सरकार के चयन के लिए चुनाव प्रचार जारी है, तब भी गंगा सियासत का हॉट टॉपिक बनी हुई है। भाजपा के साथ-साथ इस बार गंगा को भुनाने के लिए कांग्रेस भी मैदान में उतर गई है। शुरुआत पार्टी की नवनियुक्त महासचिव प्रियंका गांधी ने अपनी बोट यात्रा से की है। प्रियंका की यह बोट यात्रा न सिर्फ पार्टी का सॉफ्ट हिंदुत्व का संदेश मजबूत करेगी, बल्कि इसके जरिए कांग्रेस मोदी सरकार के वादों का खोखलापन और विकास की असलियत भी जनता के सामने लाने की कोशिश कर रही है।
उत्तर प्रदेश में गंगा नदी की लंबाई 1140 किमी है। पिछले सप्ताह इसकी लहरों पर राजनीति तैरती रही। प्रियंका गांधी बोट से करीब 140 किमी यात्रा पर निकलीं, ताकि वह गंगा की स्थिति जान सकें और गंगा के सहारे कांग्रेस के लिए प्रचार कर सकें। प्रियंका के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गंगा की सफाई के लिए वाराणसी से ही गंगा एक्शन प्लान शुरू किया था। इसी वाराणसी से 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद बने। फिर उनकी सरकार ने भी नमामि गंगे प्रोजेक्ट लॉन्च किया, ताकि गंगा साफ रहे।
उत्तर प्रदेश में कुल 80 लोकसभा सीटें हैं। इनमें से करीब आधी सीटें गंगा से प्रभावित होती हैं। बिजनौर से निकली गंगा बलिया तक करीब 26 सीटों पर धार्मिक और आर्थिक तौर पर सीधा असर डालती है। इनमें से पांच सीटें विपक्ष के पास हैं, बाकी सारी सीटों पर भाजपा का कब्जा है। प्रियंका के गंगा दौरे से धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तौर पर असर पड़ेगा। खास बात यह है कि देश में दूसरी बार नदी का सहारा लेकर बोट के जरिए प्रचार हो रहा है। इससे पहले नरेंद्र मोदी ने 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान साबरमती में बोट से प्रचार किया था।
गंगा हिंदुओं के लिए आध्यात्म और आस्था का स्रोत है। प्रियंका ने खुद को गंगा की बेटी कहकर प्रचार किया है। उन्होंने इस यात्रा की शुरुआत प्रयाग में हनुमान मंदिर का दर्शन करके की। फिर गंगा की पूजा की तब बोट पर निकलीं। फिर गंगा किनारे देवी-देवताओं के दर्शन करते हुए तमाम तरह के जातीय समाज से भी मिलीं। गंगा किनारे बसे लाखों मल्लाह-केवट समुदायों के बारे में जानकारी हासिल की। और फिर बाबा विश्वनाथ का दर्शन और गले में रुद्राक्ष की माला के साथ जनता के बीच पहुंंचीं। यह कोई मामूली माजमा नहीं था। इसके बड़े संदेश हैं।
प्रियंका गांधी के दौरे से प्रयागराज, भदोही, मिर्जापुर और वाराणसी सीटों पर सीधा असर पड़ेगा। इसके अलावा अप्रत्यक्ष रूप से कौशांबी, फूलपुर, मछलीशहर, जौनपुर, सोनभद्र, चंदौली और गाजीपुर के लोगों को साधने का काम प्रियंका ने किया है। प्रयागराज की फूलपुर सीट से जवाहर लाल नेहरू और उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित जीते थे। आखिरी दिन प्रियंका के टारगेट पर वाराणसी रहा, जो मोदी का गढ़ है। हालांकि पूर्वी यूपी की कांग्रेस महासचिव को इसका कितना फायदा मिलेगा यह चुनाव के बाद ही पता चलेगा। वाराणसी में प्रियंका ने मल्लाहों से बातचीत की। यूपी में मल्लाहों की आबादी 8 फीसदी है। इनमें निषाद, मल्लाह, केवट, कश्यप, मांझी, बिंद, धीमार जैसी कई उपजातियां हैं। इस समुदाय का प्रभाव करीब 20 सीटों पर है, जो हार-जीत में अहम भूमिका निभाती हैं। प्रियंका का चुनावी अभियान लखनऊ से शुरू हुआ था। वह भी रोड शो से। यहां उनके निशाने पर आए थे गृहमंत्री राजनाथ सिंह।

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