खेल की सियासत व सियासत का खेल

secondarticle20_20_10_2015शिवसेना के उग्र राष्ट्रवाद का कहर इस बार बीबीसीआई पर बरपा है। सोमवार को भारत-पाकिस्तान क्रिकेट रिश्ते बहाल करने के लिए जब बोर्ड के नवनिर्वाचित अध्यक्ष शशांक मनोहर मुम्बई के वानखेड़े स्टेडियम स्थित मुख्यालय में बैठे थे, तब शिवसैनिक उनके कार्यालय में जबरन घुस आए और जमकर नारेबाजी की। बोर्ड को मजबूरन बैठक को दिल्ली स्थानांतरित करना पड़ा। सेना केवल केंद्र और महाराष्ट्र में एनडीए के साथ सत्ता में भागीदार ही नहीं, विचारधारा की दृष्टि से भाजपा के सबसे निकट भी है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नारा उछालने और खुद को हिंदुत्व का संरक्षक साबित करने के मुद्दे पर दोनों दलों में अक्सर होड़ रहती है।

पिछला महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव जीतने के बाद दोनों पार्टियों ने राज्य में साझा सरकार तो बना ली, लेकिन उनके रिश्तों में खटास कम नहीं हुई है। इस सूबे में कभी भाजपा से बड़े दल के तौर पर प्रतिष्ठित सेना आज जूनियर पार्टनर है। उसके पास महज 63 विधायक हैं, जो भाजपा के मुकाबले लगभग आधे हैं। राज्य सरकार के कामकाज से जनता भी बहुत खुश नहीं है। सूखे ने कोढ़ में खाज का काम किया है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार जनवरी से सितंबर के बीच ही वहां 2234 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। आसन्न् स्थानीय निकाय चुनावों के माध्यम से सेना को अपनी खोई इज्जत पाने का अवसर मिला है, इसलिए उसके कार्यकर्ता बेजा हरकतें कर रहे हैं। उनकी निगाहें कहीं हैं, और निशाना कहीं और है।

दुविधा सरकार के स्तर पर भी है। पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोपों के बाद गत अगस्त में दोनों देशों के मुख्य सुरक्षा सलाहकारों की प्रस्तावित वार्ता रद्द हो चुकी है। ऐसे में क्रिकेट संबंध बहाल करने की वकालत कैसे की जा सकती है? यूं भी आज बीसीसीआई पर भगवा पार्टी का कब्जा है। उसके सांसद अनुराग ठाकुर बोर्ड के सचिव हैं तथा शशांक मनोहर उसके समर्थन से अध्यक्ष बने हैं। बोर्ड अध्यक्ष दिवंगत जगमोहन डालमिया और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड प्रमुख शहरयार खान ने गत दिसंबर में एक समझौता किया था, जिसके अनुसार दोनों देशों को वर्ष 2023 तक छह सीरीज खेलनी हैं। पहली सीरीज यूएई में आयोजित करने का प्रस्ताव है।

विवाद होने पर सफाई दी जा रही है कि प्रस्ताव पर मोदी सरकार की मोहर लगने के बाद ही अमल होगा। बकौल अनुराग ठाकुर कोई भी निर्णय तीन बातें ध्यान में रखकर लिया जाएगा। पहली खिलाड़ियों की सुरक्षा, दूसरी भारतीय क्रिकेट का हित और तीसरी जनभावना का सम्मान। अच्छा यही होता कि ये बातें समझौता करने से पहले तय हो जातीं। जब समझौता हुआ था, तब ठाकुर ही बोर्ड सचिव थे और केंद्र में भी मौजूदा सरकार थी।

किसी जमाने में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेली जाने वाली एशेज सीरीज क्रिकेट का सबसे बड़ा मुकाबला माना जाती थी। आज यह दर्जा हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच होने वाली सीरीज को प्राप्त है। चार जंग, मुंबई पर हमले और सीमापार से लगातार चल रही आतंकवादी गतिविधियों के कारण आज दोनों देशों के बीच अविश्वास की ऊंची दीवार खड़ी है। इसी कारण जब भारत-पाक मैच होता है, तब दोनों मुल्कों की करीब डेढ़ अरब आबादी भावनाओं के तूफान में बह जाती है। खेल का मैदान मानो रणभूमि बन जाता है। इस वर्ष हुआ विश्वकप ही लें। इसमें दोनों टीमों के लीग मुकाबले के टिकट एक बरस पहले ही बिक चुके थे और एक अरब लोगों ने टेलीविजन पर टकटकी लगाकर मैच देखा था। कमाई के नजरिए से भी यह मुकाबला सुपरहिट था। इस पर बरसे सिक्कों की खनक भारत-पाक बोर्ड के पदाधिकारियों के कानों में अभी तक गूंज रही है। इसीलिए वे सीरीज शुरू करना चाहते हैं।

पाकिस्तान की एक और मजबूरी है। आतंकवाद के कारण वहां घरेलू क्रिकेट का ढांचा चरमरा चुका है। साल 2009 में श्रीलंका टीम पर हुए आतंकवादी आक्रमण के बाद विदेशी टीमों ने वहां आने से तौबा कर रखी थी। छह बरस बाद जिम्बाब्वे की टीम ने पाक का संक्षिप्त दौरा करने का साहस दिखाया है, वर्ना तो मेहमान टीमों से खेलने हमारे पड़ोसी देश को यूएई जाना पड़ता था। कारगिल की लड़ाई और मुंबई हमले के कारण भारत-पाक क्रिकेट रिश्ता टूटे आठ बरस बीत चुके हैं। आज पाक खिलाड़ियों को आईपीएल में भाग लेने की अनुमति भी नहीं है। बचाव की एकमात्र सूरत भारत से टूटा खेल रिश्ता जोड़ना है।

बीसीसीआई की चिंता दूसरी है। सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग के कारण बीसीसीआई की साख मिट्टी में मिल चुकी है। क्रिकेट से जनता का मोहभंग होने लगा है। अपनी अंधी कमाई पर आंच न आने देने के लिए ही बीसीसीआई के आका भारत-पाक सीरीज बहाल करना चाहते हैं। दुविधा बस एक है। केंद्र में भाजपा की सरकार है, जिसके नेता कभी पड़ोसी देश के साथ क्रिकेट संबंध न रखने के प्रबल पैरोकार थे। शिवसेना उसकी सहयोगी है। बोर्ड के हालात पाक से क्रिकेट रिश्ता जोड़ने का दबाव बना रहे हैं, लेकिन पार्टी स्टैंड इसकी अनुमति नहीं देता।

 

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