आप अपनी जींस की पॉकेट में क्या-क्या सामान रख लेती हैं। एक मोबाइल और ज्यादा से ज्यादा एक पेन। क्या मोबाइल भी पूरी तरह पॉकेट में आ पाता है? गौर करेंगी तो मोबाइल आपकी पॉकेट से झांकता हुआ दिखाई देता है और दो मोबाइल रखने के बारे में तो आप सोच भी नहीं सकतीं।
वहीं अगर हम लड़कों की जींस की पॉकेट देखें तो उसका साइज इतना बड़ा होता है कि दो मोबाइल तक एक साथ आ जाते हैं। पीछे की पॉकेट में वो बड़ा सा पर्स भी रख लेते हैं।जबकि लड़कियों की जींस की पीछे की पॉकेट में कुछ पैसे रखने पर भी वो चलते-चलते खिसककर बाहर आने लगते हैं। इसके लिए लड़कियों को हमेशा एक बैग रखना पड़ता है जबकि लड़के बिना बैग के भी आराम से निकल पड़ते हैं।
लड़कियां करें भी तो क्या
अगर लड़कियों को छोटी पॉकेट नहीं चाहिए तो वो क्या कर सकती हैं। उनके पास कितने विकल्प मौजूद हैं। ये पता लगाने और लड़के व लड़कियों की जींस की पॉकेट में होने वाले अंतर को जानने के लिए बीबीसी ने जींस और ट्राउजर्स बेचने वाले कुछ बड़े ब्रांड्स के स्टोर्स पर जाकर बात की।
लीवाइस, पेपे, एचएनएम, कैंटाबेल, फ्लाइंग मशीन और ली जैसे ब्रांड में लड़कियों के लिए जींस की अलग-अलग कैटेगरी होती है। किसी कैटेगरी में छोटी पॉकेट, किसी में फेक पॉकेट (पॉकेट दिखती है पर होती नहीं) तो किसी में पॉकेट ही नहीं होती। हमें हर जगह लड़कियों और लड़कों की जींस की पॉकेट में काफी अंतर मिला। लड़कियों की जींस की पॉकेट छोटी थी और लड़कों की बड़ी। ऐसे में लड़कियों के पास पॉकेट को लेकर विकल्प ही सीमित होते हैं।
जींस की जरूरत लड़कों और लड़कियों दोनों को होती है। उनकी कीमत भी लगभग एक जैसी होती है। फिर दोनों की जींस की जेब में इतना अंतर क्यों होता है?
क्या हैं कारण
फैशन डिजाइनर अदिती शर्मा लड़कियों और लड़कों की जींस में पॉकेट के इस अंतर से सहमति जताती हैं। वह लड़कियों को लेकर बाजार की धारणा को इसकी वजह बताती हैं। अदिती कहती हैं, “आमतौर पर देखा जाए तो बहुत कम ब्रांड्स और डिजाइनर लड़कियों के कपड़ों में पॉकेट देते हैं। क्योंकि उन्हें ये लगता है कि महिलाएं फिगर को लेकर ज्यादा चिंता करती हैं। अगर वो ट्राउजर्स में ज्यादा पॉकेट देंगे तो उनका वेस्ट एरिया (कमर के आसपास का हिस्सा) ज्यादा बड़ा लगेगा और महिलाएं इसे पसंद नहीं करेंगी।”
लड़कियों की पॉकेट को लेकर बाजार की इस धारणा को फैशन डिजाइनर सुचेता संचेती भी मानती हैं। वह कहती हैं कि इस तरह के कपड़े डिजाइन करते वक़्त सोचा जाता है कि महिलाएं किसी कपड़े को इसलिए ज्यादा पसंद करेंगी क्योंकि उनका फिगर अच्छा दिखेगा। फिर सामान के लिए तो वो भारतीय परिधानों के साथ बैग रखती ही आई हैं। लड़कों के मामलों में उन्हें पॉकेट रखना बहुत जरूरी लगता है। हालांकि, अब महिलाओं के लिए भी पॉकेट वाले ड्रेस भी काफी आ रहे हैं।
उनका मानना है, “स्लिंग बैग का इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन हर कोई स्लिंग बैग लेकर नहीं घूमता। अगर लेती भी हैं तो कितनी देर तक। एक समय बाद कंधे और पीठ दर्द होने लगते हैं।”
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा मसला
ये मामला सिर्फ भारत का ही नहीं है बल्कि कई देशों में महिलाएं इस भेदभाव को महसूस कर रही हैं। महिलाओं की जींस के पॉकेट साइज को लेकर विदेशों में भी रिसर्च की गई है। पुडिंग डॉट कॉम वेबसाइट ने जींस के 20 अमरीकी ब्रांड्स पर शोध किया और उसने नतीजों में महिला और पुरुष की जींस की पॉकेट में अंतर पाया।
इस शोध के मुताबिक़, महिलाओं की जींस की सिर्फ 40 प्रतिशत पॉकेट में ही तीन बड़े ब्रांड के मोबाइल आ पाए। आधी से भी कम फ्रंट पॉकेट्स में वो वॉलेट आ पाए जो फ्रंट पॉकेट्स के लिए ही बनाए गए थे। स्किनी जींस में महिला और पुरुष दोनों के लिए छोटी पॉकेट होती हैं। लेकिन, उसमें भी महिलाओं की पॉकेट 3.5 इंच (48%) छोटी और 0.3 इंच (6%) पतली होती है। इसी तरह स्ट्रेट जींस की पॉकेट 3.4 इंच (46%) छोटी और 0.6 इंच (10%) पतली होती है।
पीछे की पॉकेट्स की बात करें तो वो भी छोटी होती हैं लेकिन उनमें अंतर कम होता है। महिलाओं की स्किनी जींस में पॉकेट 0.3 इंच (5%) छोटी और 0.1 इंच (2%) पतली होती है। स्ट्रेट जींस में 0.4 इंच (7%) छोटी और 0.1 इंच (2%) पतली होती है।इस रिपोर्ट के मुताबिक फैशन डिजाइनर क्रिश्चन डिऑर ने पॉकेट्स के पुरुषवाद पर 1954 में कहा था, “पुरुषों की जेबें सामान रखने के लिए होती हैं और महिलाओं की सजावट के लिए।”
पॉकेट को लेकर मुहिम
इस मसले पर महिलाओं का एक तबका आवाज उठाता रहा है। सोशल मीडिया पर #WeWantPockets जैसे हैशटेग के जरिए मुहिम भी चलाई गई हैं। इसमें महिलाएं छोटी पॉकेट की समस्या और पॉकेट को लेकर हो रहे भेदभाव पर चर्चा करती रही हैं।
कुछ समय पहले ही लंदन की एक महिला ने अपनी दोस्त की शादी का फोटो ट्वीट किया था। इसमें दुल्हन के वेडिंग गाउन में पॉकेट थीं और इसके कारण ये पोस्ट वायरल हो गया और महिलाओं को पॉकेट की जरूरत पर चर्चा छिड़ गई।इस मसले पर ज्यादा चर्चा विदेशों में हुई है लेकिन भारत में भी अब आवाज उठने लगी है।
पॉकेट कैसे खत्म हुई
एक समय ऐसा था जब महिलाएं पैसों और अन्य जरूरतों के लिए अपने पति पर निर्भर रहती थीं। ज्यादातर पुरुष ही बाहर के काम संभालते थे। तब महिलाओं के लिए पॉकेट जरूरी नहीं समझी जाती थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अधिकतर मर्द युद्ध के लिए चले गए थे। तब महिलाओं पर घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारियां आ गईं। ऐसे में महिलाओं को ट्राउजर्स पहनने के लिए प्रोत्साहित किया गया ताकि बाहर के कामों में वो पॉकेट्स इस्तेमाल कर सकें। लेकिन विश्वयुद्ध के बाद पुरुष घर आ गए और भूमिकाएं पहले की तरह बंट गईं। ज्यादा खूबसूरत और फिगर में दिखने के लिए महिलाओं के लिए टाइट फिटिंग कपड़ों का चलन शुरू हो गया और पॉकेट धीरे-धीरे गायब हो गई।