कोरोनावायरस की इस आपदा में कहां हैं सामाजिक सरोकार वाले एनजीओ, यह उनकी परीक्षा की घड़ी है

कोरोनावायरस महामारी से निबटने के लिये केन्द्र, राज्य सरकारें तथा प्रशासन अपने स्तर पर मुस्तैदी से काम कर रहा है. सरकार के इन प्रयासों को कई धर्मार्थ संस्थाएं और गैर सरकारी संगठन सफल बनाने में जुटे हैं ताकि देश में इस महामारी से ज्यादा से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचायी जा सके.
कितना अच्छा हो कि इस चुनौती का मुकाबला करने के लिये शहरों और कस्बों से लेकर ताल्लुका स्तर तक सामाजिक कार्यो का दावा करने वाले ये पंजीकृत गैर सरकारी संगठन जरूरतमंदों की मदद के लिये आगे आयें. इनमें से अगर आधे संगठन भी कमर कस लें तो देश के लिये इस चुनौती का सामना करना ज्यादा आसान हो सकता है.
सिख संगत और दूसरी धर्मार्थ संस्थाओं की तरह ही ये गैर सरकारी संगठन भी आगे आकर पलायन कर रहे असंगठित क्षेत्र के कामगारों तथा दिहाड़ी मजदूरों को कम से कम भोजन और अस्थाई रूप से आवास की व्यवस्था करने के कामों में व्यस्त रख सकते हैं. ऐसा करके जहां एक ओर समाज के इस वर्ग की भोजन और रहने की समस्या का समाधान हो सकेगा वहीं कोरोनावायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिये जरूरी ‘सामाजिक दूरी’ बनाये रखने के सरकार के प्रयासो को भी सफलता मिलेगी.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी की जनता से संपर्क के दौरान आह्वान किया है कि सक्षम लोग इन 21 दिनों में रोजाना नौ परिवारों के भोजन की जिम्मेदारी वहन करें.
आगे आएं एनजीओ
इस काम में गैर सरकारी संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. यही समय है जब वे समाज के सामने अपनी सार्थकता का परिचय दे सकते हैं. इस समय देश में सामाजिक सेवा करने वाले करीब 33 लाख गैर सरकारी संगठन पंजीकृत हैं और इन संगठनों को केन्द्र तथा राज्य सरकार से अरबों रूपए की आर्थिक सहायता मिल चुकी है. इनमे से कई संगठनों को अपने परोपकारी कार्यो के लिये विदेशों से भी आर्थिक मदद मिलती है.
एक अनुमान के अनुसार देश में विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यों के लिये करीब 33 लाख गैर सरकारी संगठन पंजीकृत हैं जिन्हें केन्द्र और राज्यों से हर साल करीब एक हजार करोड़ रूपए की आर्थिक मदद मिलती रही है.
अगर ये पंजीकृत गैर सरकारी संगठन संकट की इस घड़ी में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिये आगे आयें तो ऐसी कोई वजह नहीं है कि असंगठित क्षेत्र के कामगारों, बेसहारा और असहाय लोगों की तत्परता से मदद नहीं हो सके.
लेकिन आमतौर पर ऐसा होता नजर नहीं आ रहा. इसकी एक वजह यह भी है कि सरकारी मदद प्राप्त करने वाले अधिकांश संगठन इस धन के उपयोग का विवरण सरकार को देना नहीं चाहते. दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि अधिकांश गैर सरकारी संगठन सिर्फ कागजी बनकर रह गये और उन्होंने सरकार से मिली आर्थिक सहायता का उपायोग संभवत: सामाजिक कार्यो के लिये करने की बजाये अपनी जरूरतों को पूरा करने में किया है.
सीबीआई के हाथों में जांच
अधिकांश गैर सरकारी संगठनों की गतिविधियों और उन्हें मिलने वाली सरकारी सहायता को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं. इन संगठनों की वित्तीय अनियमित्ताओं का मामला देश की शीर्ष अदालत तक पहुंचा. स्थिति यह हुयी कि न्यायालय को दो सितंबर, 2013 को इन संगठनों और इनके आमदनी तथा खर्च का पता लगाने की जिम्मेदारी केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंपनी पड़ी थी.
इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने 10 जनवरी, 2017 को न्यायालय को बताया था कि देश में 32,97,044 गैर सरकारी संगठन हैं लेकिन इनमें से सिर्फ 3,07,072 संगठन ही नियमित रूप से अपनी बैंलेंस शीट और खर्चो का लेखा जोखा दाखिल करते हैं.
सामाजिक सरोकार से संबंधित अनेक संगठनों को कापार्ट के माध्यम से धन मिलता है और इस संस्था की विनियमन प्रक्रिया के नियमों में बाकायदा उससे मिले धन के उपयोग के बारे में ऑडिट की भी व्यवस्था है. लेकिन ग्रामीण विाकास मंत्रालय और कापार्ट द्वारा न्यायालय में दाखिल अपने जवाब में ऐसा संकेत दिया गया कि मानों वे ऐसे स्वैच्छिक संगठनों और गैर सरकारी संगठनों का ऑडिट करने की जिम्मेदारी से अनभिज्ञ थे. न्यायालय ने इसके बाद ही कापार्ट और अन्य विभागों को ऑडिट की प्रक्रिया पूरी करने का भी निर्देश दिया था.
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहड़, न्यायमूर्ति एन वी रमण और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने सारी स्थिति पर अप्रसन्नता व्यक्त की थी और कहा था कि कापार्ट तथा इसी तरह की अन्य नोडल एजेन्सियों ने जनता का धन इन संगठनों को दिया है. इसलिए इसकी जवाबदेही भी होनी चाहिए.
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि अगर ऐसे संगठन निर्धारित नियमों का पालन नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ दीवानी और आपराधिक कार्रवाई करना जरूरी है ताकि कापार्ट और सरकार को जनता का संबंधित धन वापस मिल सके और इन संगठनों के खिलाफ धन के दुरूपयोग के आरोप में आपराधिक कार्रवाई शुरू की जाये. न्यायालय ने इसी के अनुरूप सरकार को नियमों का पालन नहीं करने वाले गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया था.
विदेशों से मिलने वाले चंदे पर लगाई रोक
गैर सरकारी संगठनों द्वारा नियमों का अनुपालन नहीं करने के मामले में न्यायालय की फटकार के बाद केन्द्र सरकार हरकत में आयी और उसने बड़ी संख्या में ऐसे संगठनों का पंजीकरण रद्द कर दिया. सरकार ने करीब 14,500 ऐसे संगठनों का विदेशी चंदा विनियमन कानून के तहत पंजीकरण भी रद्द कर दिया.
गृह मंत्रालय द्वारा संसद को दी गयी जानकारी के अनुसार विदेशों से चंदा प्राप्त करने की पात्रता रखने वाले गैर सरकारी संगठनों को वर्ष 2018-19 में 28 नवंबर तक 2,244.77 करोड़ रूपए का विदेशी चंदा मिला था जबकि 2017-18 में यह करीब 16,904 करोड़ रूपए था.
शीर्ष अदालत ने केन्द्र सरकार से अपेक्षा की थी कि वह मान्यता प्राप्त स्वैच्छिक और गैर सरकारी संगठनों के लिये दिशा निर्देश तैयार करेगी जिसमे प्रावधान होगा कि वे सरकार से मिले अनुदान के खर्च का लेखा जोखा रखेंगे और इसका ऑडिट भी करायेंगे. इन दिशा निर्देशों और नियमों में धन का दुरूपयोग होने की स्थिति में ऐसे संगठन से धन की वसूली और उसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने का प्रावधान भी शामिल करना था.
न्यायालय की सख्ती के बाद केन्द्र सरकार ने अप्रैल 2017 में गैर सरकारी संगठनों को अनुदान देने और उसके उपयोग के बारे में दिशा निर्देश तैयार किये और इन्हे अंतिम रूप देने से पहले 73 मंत्रालयों तथा विभागों के पास उनकी राय जानने के लिये भेजा था.
हालांकि, इसके बाद से इस मामले में किसी न किसी वजह से सुनवाई स्थगित होती रही है. यह प्रकरण कोरोना वायरस का प्रकोप फैलने के दौरान 16 मार्च को प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुआ था.
उम्मीद की जानी चाहिए कि सामाजिक कार्यो के लिये केन्द्र और राज्य सरकारों से आर्थिक सहायता प्राप्त करने वाले लाखों गैर सरकारी संगठन देश के सामने आयी इस विपदा में आगे आयेंगे और इस संकट से निबटने में सक्रिय योगदान करके अपनी उपयोगिता साबित करने में पीछे नहीं रहेंगे.
thePrint से साभार

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