कोणार्क: श्रीकृष्ण के बेटे ने कराया था इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण

उड़ीसा के पुरी जिले में स्थित है कोणार्क सूर्य मंदिर। यह मंदिर साल 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया जा चुका है। इस मंदिर की प्रतिमा 10 रुपए के नए नोटों पर भी छपी है। आइए जानते हैं इस मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व…

निर्माण और धार्मिक महत्व
जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है। स्थानीय लोग सूर्य देव को बिरंचि नारायण और अर्क के नाम से भी पुकारते हैं। इस मंदिर के निर्माण के बारे में धार्मिक पुस्तकों से जानकारी मिलती है कि यह मंदिर द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के बेटे सांब ने बनवाया था। बताया जाता है कि सांब ने यहीं सूर्य देव की तपस्या की थी और उनकी कृपा से सांब का कोढ़ रोग दूर हुआ था।

यह है पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, श्रीकृष्ण के बेटे सांब को एक शाप के कारण कोढ़ रोग हो गया था। तब उसने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के तट पर कोणार्क में सूर्य देव की तपस्या की थी। सूर्य देव को सभी रोगों का नाशक माना जाता है। सांब की तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें रोग मुक्त किया।

रोगों से मुक्ति दिलाते हैं सूर्य देव
रोग से छुटकारा पाने के बाद जब सांबदेव ने चंद्रभागा नदी में स्नान किया तो नहाते समय उन्हें सूर्य देव की एक मूर्ति नदी से प्राप्त हुई। मूर्ति मिलने के बाद सांब ने उसी स्थान पर सूर्य देव का मंदिर बनवाने का निर्णय लिया और इस तरह कोणार्क का मंदिर बना।

यह है मूर्ति से जुड़ी कथा
स्नान के समय सांब को जो सूर्य देव की मूर्ति मिली, उस मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि उस मूर्ति का निर्माण देवताओं के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने सूर्य देव के शरीर के भाग से ही किया था।

ध्वस्त होने के मुख्य कारण
जिस प्रकार इस मंदिर के निर्माण के सही वक्त परअलग मत है, ठीक उसी प्रकार इसके बड़े हिस्से के ध्वस्त होने के पीछे भी कई मत हैं। एक तरफ जहां इतिहासकार इस मंदिर के ध्वस्त होने का कारण मुगलों का आक्रमण और देखरेख का अभाव बताते हैं, वहीं वास्तुशास्त्री इस मंदिर के ध्वस्त होने का कारण इसका खराब वास्तु बताते हैं।

मिले विलुप्त नदी के साक्ष्य
वक्त के साथ तमाम भौगोलिक और प्राकृतिक घटनाओं के चलते चंद्रभागा नदी विलुप्त हो गई थी। वर्ष 2016 में वैज्ञानिकों ने इस मंदिर क्षेत्र से इस नदी के साक्ष्य खोज निकाले। वैज्ञानिकों ने विभिन्न उपग्रहों की तस्वीरों का इस्तेमाल किया और फिर नदी की धारा की पहचान करने और उसका मार्ग पता लगाने के लिए अन्य क्षेत्रीय आंकड़ों का इस्तेमाल किया।

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