केजीएमयू प्रशासन को नहीं विकलांगों-जेई के मरीजों का खयाल, एक्‍ट भी ठेंगे पर!

-लिम्‍ब सेंटर को कोविड हॉस्पिटल में बदलने की तैयारी, कर्मचारियों में गहरा आक्रोश

-शासन ने भी कहा था लिम्‍ब सेंटर को छोड़कर दूसरी जगह का प्रस्‍ताव भेजें

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। केजीएमयू के लिम्ब सेंटर को कोविड-19 हॉस्पिटल बनाए जाने हेतु दोबारा प्रस्ताव भेजे जाने की सूचना मिलने से एक बार फिर विरोध के स्वर उठने लगे । संज्ञान में आया कि पूर्व में भेजे गए प्रस्ताव पर शासन द्वारा कहा गया था कि लिम्‍ब सेंटर की जगह कोई और जगह देखकर पुनः प्रस्ताव भेजा जाए।

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष सुरेश रावत, प्रमुख उपाध्यक्ष सुनील यादव ने कहा कि दिव्‍यांग मरीजों की चिंता एवं जनहित को देखते हुए इस संबंध में कर्मचारी शिक्षक संयुक्त मोर्चा द्वारा चिकित्सा शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर पूरी समस्या से अवगत कराया था।

मोर्चे का कहना है कि चोट लगे हुए मरीजों में 30 से 40% मरीजों को ऑर्थोपेडिक इंटरवेंशन की जरूरत होती है, जो मेडिकल कॉलेज के इसी डिपार्टमेंट से दिया जाता है।

यहां केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं अगर बगल के राज्यों से भी मरीज आकर सेवाएं प्राप्त करते हैं। वास्तव में यह सेंटर रीढ़ की हड्डी की चोट, ऑर्थोप्लास्टी और ऑर्थोस्कॉपी का एकमात्र सेंटर है ।

शारीरिक अपंगता, दिमाग में लगी हुई चोट शरीर का कोई अंग कट जाना या पोलियो के मरीज या अन्य किसी भी प्रकार से शरीर का कोई अंग खराब हो जाता है तो उसका इलाज इसी डिपार्टमेंट में किया जाता है ।

जापानी इंसेफेलाइटिस के पुनर्वास के लिए मरीजों को भर्ती करने का एकमात्र केंद्र यही है। रिह्यूमेटोलॉजी डिपार्टमेंट में अर्थराइटिस सहित तमाम इम्यूनोलॉजिकल बीमारियों का इलाज इस सेंटर में किया जाता है। प्रतिवर्ष लगभग 65000 से अधिक मरीज इस सेंटर द्वारा उपचारित किए जा रहे हैं। पूरे प्रदेश से मरीज लगातार इस सेंटर में आते हैं और अपना इलाज करा रहे हैं। बच्चों की हड्डियों से संबंधित समस्याओं का इलाज भी यहां पर होने के साथ ही इसी सेंटर में स्पोर्ट्स मेडिसिन का भी सेंटर है।

ज्ञातव्य है कि हड्डी की गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज भी इसी भवन में भर्ती हैं। हादसे में घायलों के अंग गंवाने वालों का भी इलाज चल रहा है। पीडियाट्रिक ऑर्थोपैडिक्स, गठिया समेत अन्य विभागों का संचालन हो रहा है। ऐसे में भवन के मरीजों को दूसरी जगह शिफ्ट करने से खासी अड़चन होगी। वहीं कर्मचारियों में इसको लेकर खासा आक्रोश है।

लिम्ब सेंटर प्रदेश का अकेला केंद्र है। इसमें दिव्यांगजनों के लिए उपकरण बनाए जाते हैं। कर्मचारियों का कहना है कि केजीएमयू प्रशासन इसे कोविड-19 अस्पताल में बदलना चाहता है, जबकि इस विभाग को केवल दिव्यांगजन के कार्यों के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इसका जिक्र केजीएमयू एक्ट में भी है। ऐसे में यदि लिम्ब सेंटर को प्रशासन कोविड-19 अस्पताल बनाया जाता है तो ये शासनादेश व विश्वविद्यालय एक्ट का उल्लंघन होगा। मोर्चे का कहना है कि कोविड-19 हॉस्पिटल बनाने के कई और विकल्प केजीएमयू में हैं। इस भवन के निकट एसएसपी दफ्तर है । घनी बस्ती जवाहर नगर, रिवरबैंक कॉलोनी है इसलिए यहां संक्रमण के प्रसार का खतरा ज्यादा है। मोर्चे का कहना है कि कन्वेंशन सेंटर को कोविड हॉस्पिटल में आसानी से तब्दील किया जा सकता है। इसके अलावा परिसर में कई अन्य भवन हैं जो बनकर लगभग तैयार हैं, फिलहाल के तौर पर उनका भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

मोर्चे के अध्यक्ष वी पी मिश्रा ने कहा कि यह एकमात्र ऐसा संस्थान है जहां प्रतिवर्ष लगभग 8000 कृत्रिम अंग अवयव बनाए जाते हैं,  इस संस्थान में एकमात्र इम्यूनोलॉजिकल लैब है। यहां प्रतिवर्ष लगभग पच्चीस सौ मरीज भर्ती होते हैं। प्रदेश का एकमात्र संस्थान होने के कारण अगर इसे कोविड-19 चिकित्सालय में परिवर्तित किया जाता है तो प्रदेश के विकलांगों का पुनर्वास एवं उपचार मुश्किल हो जाएगा। कर्मचारी शिक्षक संयुक्त मोर्चा ने सरकार को सलाह दी है कि मेडिकल कॉलेज में अन्य किसी भवन में कोविड-19 बनाया जाए जिससे विकलांगों के इलाज में कोई समस्या ना आए ।

परिषद के अध्यक्ष सुरेश रावत का कहना है कि केजीएमयू एक्ट 2010 में स्पष्ट है कि इस संस्थान का उपयोग किसी और आवश्यकता के लिए नहीं किया जा सकता है। इन सभी विभागों में कर्मचारी व उनके परिवार भी लाभ प्राप्त कर रहे हैं यदि यह परिवर्तन किया जाता है तो इससे कर्मचारी व परिवारजन प्रभावित होंगे जिससे मजबूरन कठोर निर्णय लेने के लिए बाध्य होना पड़ेगा जिससे प्रदेश की आकस्मिक सेवायें भी प्रभावित हो सकती हैं।

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