कुंभ खत्म होते ही कहां गायब हो जाते हैं नागा साधु, जानें बेहद अद्भुत रहस्य

जैसा की हम सभी जानते है की प्रयागराज कुंभ का महापर्व चल रहा है, हमेशा की ही तरह ही इस बार कुंभ का आकर्षण का कारण नागा साधु रहें है। इसके साथ ही कुंभ में ज्यादातर लोग नागा साधु को देखने को आते हैं। नागा नाम जैसे ही मन में आता है वैसे ही आंखों के आगे एक अलग ही तस्वीर बनती है।  आपने नागा साधुओं के बारे में तो शायद सुना ही होगा और शायद ऐसे नागा साधुओं को देखा भी होगा। ऐसे नगा साधू अर्धकुंभ, महाकुंभ में हुंकार भरते, शरीर पर भभूत लगाए नाचते-गाते नागा बाबा अक्सर दिखायी देते हैं। लेकिन आपको बता दें कि कुंभ खत्म होते ही ये नागा बाबा न जाने किस रहस्यमयी दुनिया में चले जाते हैं, इसका किसी को नहीं पता।

आपको बता दें कि नागा साधु कहां से आते हैं और कुंभ के बाद कहां जाते हैं? ये आज तक कोई नहीं जान पाया है। तो आज हम आपको बताते हैं कि कैसी होती है उनकी जिंदगी और वो कैसे बनते हैं नागा साधु? तो चलिए आइए आज हमारे साथ चलते हैं इन साधुओं के अनदेखे संसार में…

आखिरकार कैसे बनते हैं ये नागा साधु?

जब भी कोई व्यक्ति नागा साधु बनने के लिए अखाड़े में जाता है, तो सबसे पहले उसके पूरे बैकग्राउंड के बारे पता किया जाता है।जब अखाड़ा पूरी तरह से आश्वस्त हो जाता है, तब शुरू होती है, उस शख्स की असली परीक्षा। अखाड़े में एंट्री के बाद नागा साधुओं के ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है, जिसमें तप, ब्रह्मचर्य, वैराग्य, ध्यान, संन्यास और धर्म की दीक्षा दी जाती है।

आपको बता दें कि इस पूरी प्रक्रिया में एक साल से लेकर 12 साल तक लग सकते हैं। अगर अखाड़ा यह निश्चित कर लें कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है, फिर उसे अगली प्रक्रिया से गुजरना होता है। दूसरी प्रक्रिया में नागा अपना मुंडन कराकर पिंडदान करते हैं, इसके बाद उनकी जिंदगी अखाड़ों और समाज के लिए समर्पित हो जाती है। वो सांसारिक जीवन से पूरी तरह अलग हो जाते हैं। उनका अपने परिवार और रिश्तेदारों से कोई मतलब नहीं रहता। आपको बता दें कि पिंडदान ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें वो खुद को अपने परिवार और समाज के लिए मृत मान लेता है और अपने ही हाथों से वो अपना श्राद्ध करता है। इसके बाद अखाड़े के गुरु नया नाम और नई पहचान देते हैं।

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चिता की राख से भस्म की चादर:

नागा साधु बनने के बाद वो अपने शरीर पर भभूत की चादर चढ़ा देते हैं। ये भस्म भी बहुत लंबी प्रक्रिया के बाद बनती है। मुर्दे की राख को शुद्ध करके उसे शरीर पर मला जाता है या फिर हवन या धुनी की राख से शरीर ढका जाता है।

कहां रहते हैं नागा साधु?

ऐसा माना जाता है कि ज्यादातर नागा साधु हिमालय, काशी, गुजरात और उत्तराखंड में के पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। नागा साधु बस्ती से दूर गुफाओं में साधना करते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि नागा साधु एक ही गुफा में हमेशा नहीं रहते हैं, बल्कि वो अपनी जगह बदलते रहते हैं। कई नागा साधु जंगलों में ही घूमते-घूमते कई साल काट लेते हैं और वो बस कुंभ या अर्धकुंभ में नजर आते हैं।

क्या खाते हैं नागा साधु?

ऐसा कहा जाता है कि नागा साधु 24 घंटे में सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं। वो खाना भी भिक्षा मांगकर खाते हैं। इसके लिए उन्हें सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार होता है। अगर सातों घरों से कुछ न मिले, तो उन्हें भूखा ही रहना पड़ता है।

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