कांग्रेस बनाम ज्ञानी

अभिषेक श्रीवास्तव
एक बहुत पुरानी ग्रीक कथा है। शायद ईसप की। एक बाप और बेटे अपने गधे के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में किसी ने टोक दिया कि मूर्ख हो क्या, गधा साथ में है तो इस पर बैठ जाओ। बात सही लगी। बाप बैठ गया। लड़का पैदल चलता रहा। फिर एक और राहगीर मिला। उसने ताना मारते हुए कहा कि कैसा स्वार्थी बाप है, बेटे को पैदल चला रहा है। बाप को बुरा लगा।
उसने बेटे को बैठा दिया और खुद पैदल चलने लगा। फिर एक और आदमी मिला। उसने लड़के का मखौल उड़ाया और बोला कि तुम तो हट्टे कट्टे जवान हो, शर्म नहीं आती बैठे हुए? लड़का शर्मिंदा हुआ। उसने बाप से कहा, आओ आप भी बैठ जाओ। दोनों गधे पर बैठ के आगे बढ़े तो एक और ज्ञानी मिला।
उसने च च च करते हुए गधे की किस्मत का रोना रोया। बोला, गधे की जान लोगे क्या दोनों मिल के? दोनों बाप बेटे शर्मिंदा हुए। उन्होंने गधे को बांध लिया एक लट्ठ में और टांग के चल पड़े। रास्ते में पुल पार करते हुए गधे ने दुलत्ती मारी। बैलेंस बिगड़ा। कहानी खत्म।
कांग्रेस पार्टी का असल संकट आंतरिक नहीं, बाहरी है। तमाशबीन और राहगीर टहोका लगातार मारे हुए हैं। भाई लोग उसी के चलते सीरियस होकर अंड का बंड काम कर रहे हैं। ज़्यादा पैंतरा बदलेंगे तो पार्टी पुल से नीचे लुढ़क जाएगी गधे की तरह। चुप मार के पार्टी में बने रहें। सोनिया गांधी का नेतृत्व स्वीकार करें। बाप को बाप रहने दें। ये कांग्रेस है, बीजेपी नहीं। यहां अतीत का मूल्य होता है।
बीजेपी अतीतबोध से शून्य पार्टी है। वहां कोई भी किसी भी पद पर जा सकता है क्योंकि किसी पद का कोई महत्व नहीं है। किसी को भी अध्यक्ष बना देना लोकतंत्र नहीं होता। पद अर्जित किया जाता है। भाजपा में पद बंटता है। आधा पन्ना प्रमुख से लेकर शीर्ष तक।

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कांग्रेस और भाजपा में जो फर्क है, उसे समझना होगा। सोनिया गांधी ने जिस तरीके से कांग्रेस को राजीव के बाद संभाला है, उनके सामने कायदे से कोई टिकता नहीं है। वैसे भी, परिवार और पार्टी के डबल इंजन ढांचे में परिवार ही प्रमुख होता है।
जैसे भाजपा और संघ के ढांचे में संघ परिवार। उसी तरह कांग्रेस के मामले में गांधी परिवार। भाजपा से संघ को निकाल देना भाजपा की मौत है। उसी तरह कांग्रेस से गांधी परिवार को निकाल देना कांग्रेस की मौत होगी।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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