ओबरा अग्निकांड में चार्जसीटेड संजय तिवारी, वित्तीय अनियमितता का आरोपी, फाईल को छुपाया

#ओबरा अग्निकांड में चार्जशीटेड पर वित्तीय अनियमितता की फाइल दाबने में कामयाब.

#दागी को भी नही हटा पा रही योगी सरकार निदेशक पद से.

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : शुचिता और जीरो टालरेंस के दावे वाली योगी सरकार में चार्जशीटेड और वित्तीय अनियमितता का आरोपी व्यक्ति शान से बिजली उत्पादन निदेशक में नीतियां निर्धारित करने का काम कर रहा है. प्रदेश को रौशन करने वाली सबसे बड़ी संस्था के शीर्ष पदों में से एक पर काबिज संजय तिवारी अपनी पिनक में ओबरा बिजलीघर फुंकवाने में तो रिटायरमेंट के दिन चार्जशीट पा गया पर उससे भी बड़ी वित्तीय अनियमितता की फाइल खुद ही दाब कर बैठ गया है. इस दागी निदेशक का रवैया इस कदम कामयाब है कि प्रोबेशन पर आने के बावजूद अब तक  उत्तर प्रदेश विद्युत् उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक के पद पर काबिज है.

संजय तिवारी को निगम द्वारा 28 फरवरी को उसके रिटायरमेंट के दिन जिस ओबरा अग्निकांड का जिम्मेदार ठहराया गया और चार्जसीट दी गयी, उसी ओबरा परियोजना में अपने परियोजना प्रबंधक रहने के दौरान उसका जो नया कारनामा सामने आ रहा है वह काफी चौंकाने वाला है. संजय तिवारी ने अपने CGM ओबरा के 3 साल के कार्यकाल में कई बार Priority क्रम को तोड़कर भुगतान कराने के लिए बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का काम किया और उसमे ऐसे भी भुगतान कराए जो तुरंत प्लांट चलाने के लिए आवश्यक भी नहीं थे. दूसरे शब्दों में कहें तो धन लेने के लिए हर महीने फ़ंड आते ही मंडी लग जाती थी और पैसे लेने के लिए पैसे की बोली लगती थी. इस तरह पैसे को बेच कर इन्होने अकूत पैसा कमाया. इसकी शिकायत लखनऊ निदेशालय पहुंचने पर जांच गठित की गई और जांच मे ये दोषी पाए गए.

निदेशक कार्मिक बनाये जाने के पहले ओबरा परियोजना के CGM पद पर रहने के दौरान संजय तिवारी पर वित्तीय अनियमतता का आरोप लगा था. जिसकी तत्कालीन CMD कामरान रिजवी ने 09 अगस्त 2017 को पत्रांक संख्या 330/UPRVUNL/CGM द्वारा चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म मेसर्स जमुना शुक्ला एंड एसोसिएटस, वाराणसी को ओबरा परियोजना की 01.04.2016 से 30.06.2017 अवधि तक का स्पेशल आडिट कराए जाने का आदेश सौंपा था. चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म द्वारा तय अवधि में किये गये आडिट की रिपोर्ट को निदेशक वित्त को सौंपा गया था. सूत्र बताते हैं कि फर्म की रिपोर्ट को निदेशक वित्त द्वारा संजय तिवारी पर कार्यवाही हेतु CMD को भेज दिया, जिसको CMD ने निदेशक कार्मिक को कार्यवाही हेतु भेज दिया. इसी बीच निदेशक कार्मिक के पद पर संजय तिवारी का चयन हुआ और चयन में उसके द्वारा इस जांच और कार्यवाही के तथ्यों को छिपाया गया.

जानकारों की माने तो जब खुद पर कार्यवाही की फाईल निदेशक कार्मिक संजय तिवारी के पास गयी तो उसने उक्त फाईल को लेकर अपनी आलमारी में रख लिया तथा कागजी खानापूर्ति करने में लग गया. इस तरह 28 फरवरी को अपने सेवानिवृत्ति तक संजय तिवारी ने इस फाईल को दबाये रखा और बाहर आने नहीं दिया. अगर यह फाईल समय से बाहर आ जाती तो शायद अब तक एक और मामले में उसपर चार्जसीट हो चुकी होती. ऐसे में अब जो बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं वह ये हैं कि संविदा पर चल रहे इस निदेशक कार्मिक का यह कृत्य उसके निदेशक पद पर बने रहने के लिए कितना उचित है और इसपर निगम के जिम्मेदार और शासन कब संज्ञान लेंगे. संजय तिवारी का यह एक ऐतिहासिक कारनामा माना जा रहा है जिसमें वही खुद दोषी है और खुद ही अपने कारनामे की फाईल को दबाये बैठा है. क्या निदेशक कार्मिक की सेवा शर्तों में चार्जसीट पाए व्यक्ति और वित्तीय अनियमितता के दोषी को निदेशक के पद पर बनाये रखे जाने का प्रावधान है.

बताते चलें कि उत्पादन निगम मे ठेकेदारों के बिलों के भुगतान के लिए एक बेहद ही पारदर्शी व्यवस्था की गई है. इसमे हर कार्य होने के बाद जो बिल बनाया जाता है उसे जिस तारीख को वित्त विभाग को भुगतान करने के लिए भेजा जाता है उसी दिन वित्त विभाग उस बिल को एक Priority नंबर दे देता है. फिर हर माह निश्चित धनराशि मिलने के बाद क्रमवार बिलों के भुगतान किए जाते हैं. इस तरह सभी फर्मों को पता होता है कि वह अपने बिल का भुगतान कब तक पा जाएंगे. लेकिन पावर प्लांट के कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्हे रोका नहीं जा सकता है उसका भुगतान करना ही होता है ताकि प्लांट का विद्युत उत्पादन बाधित ना हो. ऐसे भुगतान को पहले या तुरंत करने का अधिकार उस पावर प्लांट के CGMको होता है, और वह कुल मासिक रेवेन्यू का 10 प्रतिशत अपने विशेषाधिकार से Priority ब्रेक कर सकता है. प्लांट हित में यह Priority धनराशि पहले 25 फीसदी तक थी. इस भुगतान मे एक शर्त यह भी होती है कि यदि निर्धारित लिमिट से ज्यादा एमाउंट का भुगतान किया जाना जरूरी है तो ऐसी स्थिति में मुख्यालय से अनुमति लेना आवश्यक होता है. लेकिन इसका अनुपालन भी संजय तिवारी द्वारा नहीं किया गया था.

वर्ष 2010 में आदेश संख्या 318/उ0नि0लि0/मु0म०प्र०(वित्त) एवं कार्यालय ज्ञापन सख्या 173 उ0नि0लि0/मु0म०प्र०(वित्त) दिनांक 10.02.2011 के अनुसार अनुरक्षण एवं परिचालन मद में भुगतान हेतु प्रक्रिया में एकरूपता लाने एवं अनुरक्षण एवं परिचालन मद में दायित्व सृजन सीमित करने के आदेश दिए गए थे. तथा आवश्यक कार्य हेतु प्राथिमकता अतिक्रमण कर भुगतान हेतु सीमाएं निर्धारित की गयीं थीं. यदि इसका अनुपालन ठीक ढंग से नहीं किया जाता तो इसका विपरीत प्रभाव उत्पादन निगम लिमिटेड की वित्तीय स्थिति पर पड़ता है.

वर्ष 2010-11 के इस आदेश का अनुपालन ओबरा परियोजना में प्रबंधक रहे संजय तिवारी द्वारा ठीक ढंग से नहीं किया जा रहा था, इस बात की शिकायत निगम तक पहुंची तो तत्कालीन निगम निदेशक कामरान रिजवी ने ओबरा तापीय परियोजना की विशेष संप्रेक्षा चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म मेसर्स जमुना शुक्ला एंड एसोसिएटस, वाराणसी से कराये जाने का आदेश संख्या 329/उ0नि0लि0/मु0म०प्र०(वित्त)/ओ0एंडएम0, दिनांक 09 जुलाई 2017 को निर्गत किया. और इस कार्य के सुपरविजन के लिए विभाग के ही 2 अधिकारियों एस0के0 वर्मा अधीक्षण अभियंता, उ0नि0लि0 शक्ति भवन विस्तार और रवीश कुमार वरिष्ठ लेखाधिकारी, पनकी तापीय परियोजना की एक समिति गठित कर दिया.

समिति को कुछ बिन्दुओं मसलन Priority ब्रेक कर किये गए भुगतान के औचित्य की जांच, निगम के कार्यालय ज्ञापन संख्या 159 दिनांक 03.08.2010 के अनुसार Priority रजिस्टर “A” एवं “B” में रखे जाने वाले वर्क्स/कार्य के बीजकों के भुगतान हेतु अपनाई गयी प्रक्रिया की जांच, इसके अलावा कार्यालय ज्ञापन संख्या 318 दिनाक 03.08.2010 के अनुसार Priorityरजिस्टर “A” एवं “B” में रखे जाने वाले वर्क्स/कार्य के बीजकों का आधार एवं औचित्य की जांच जैसे बिंदु पर विशेष संप्रेक्षा करने और पायी गयी अनियमितताओं के लिए उत्तरदायी अधिकारियों को चिन्हित करने की जिमीदारी दी गयी. साथ ही परियोजना प्रमुख तथा परियोजना लेखा प्रमुख को यह निर्देश भी दिया गया कि समिति को आवश्यक अभिलेख एवं सहयोग शीर्ष प्राथमिकता पर प्रदान किया जाय. समिति को यह रिपोर्ट 15 कार्यदिवस में सौंपनी थी.

साभार

अफसरनामा डाट काम

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