ऐसा था JKLF का संस्थापक, जिसे इंदिरा गांधी के समय में दी गई थी फांसी

JKLF founder Maqbool Bhat story मकबूल भट ने JKLF का एक विंग बनाया था. जिसे जम्मू-कश्मीर नेशनल लिबरेशन फ्रंट (JKLNF) का नाम दिया गया. इसी विंग ने बाद में भारतीय सेना और सशस्त्र बलों के साथ आमने-सामने की लड़ाई लड़ी.

केंद्र सरकार ने अलगाववादी नेता यासीन मलिक की अगुवाई वाले संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी JKLF पर प्रतिबंध लगा दिया है. यह प्रतिबंध आतंक विरोधी कानून के तहत लगाया गया है. इस संगठन का इतिहास भी पुराना है.इस संगठन की स्थापना दो लोगों ने मिलकर की थी. जिसमें पहला नाम था मकबूल भट और दूसरा था अमानउल्लाह खां. इस संगठन का एक ही मकसद था कश्मीर की आजादी.
कौन था मकबूल भट
उस वक्त भारत अंग्रेजों का गुलाम था और कश्मीर एक आजाद रियासत. तभी 1938 के फरवरी माह में कुपवाड़ा जिले के त्राहगाम में मकबूल भट का जन्म हुआ था. मकबूल जब 11 बरस का था, तो उसकी मां का निधन हो गया. वो पढ़ाई लिखाई में ठीक था. वक्त गुजरता रहा. मकबूल ने श्रीनगर के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास और राजनीतिक विज्ञान की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए मकबूल ने पाकिस्तान की पेशावर यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया. वहां मकबूल की मुलाकात शायर अहमद फराज़ से हुई. फराज़ से मुलाकात के बाद मकबूल को शायरी भा गई. चंद दिनों बाद मकबूल ने वहां के एक उर्दू अखबार में काम करना शुरू कर दिया.
जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का जन्म
पेशावर से पढ़ाई पूरी करने के बाद मकबूल भट पाकिस्तान से ब्रिटेन के शहर बर्मिंघम जा पहुंचा. वहां उसकी मुलाकात कुछ और लोगों से हुई. इसके बाद संगठन बनाने की योजना बनाई गई. और उसी योजना को अमली जामा पहनाते हुए मकबूल ने अमानउल्लाह खां के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट बनाया. बात यहीं खत्म नहीं हुई. मकबूल भट ने इसी संगठन का एक और विंग बनाया. जिसे जम्मू-कश्मीर नेशनल लिबरेशन फ्रंट (JKLNF) का नाम दिया गया. ये JKLF का वो विंग था, जिसने बाद में भारतीय सेना और सशस्त्र बलों के साथ आमने-सामने की लड़ाई की.
कश्मीर लौटा मकबूल भट
भारत अब आजाद था. कश्मीर का विलय भारत में हो चुका था. लिहाजा कई साल बाद 1966 में मकबूल भट भारत आ गया. यहां आते ही वो कश्मीर को आजाद कराने की आवाज़ उठाने लगा. वो बागी बन चुका था. भारत के खिलाफ बोलने लगा था. वो अपने साथ दूसरे अलगववादी विचारों वाले युवाओं को जोड़ने लगा. जेकेएलएफ के विंग JKLNF के लोग भी उसके एजेंडे पर काम कर रहे थे. वो हर वक्त कश्मीर की आजादी राग अलापता था.
भारत में मकबूल की गिरफ्तारी
इसी बीच एक दिन मकबूल और JKLNF का सामना पुलिस से हो गया. गोलीबारी हुई और मकबूल का एक खास साथी औरंगजेब एनकाउंटर में मारा गया. साथ ही अमर चंद नामक एक पुलिस अफसर भी शहीद हुआ. इसके बाद पुलिस ने अमरचंद की हत्या के आरोप में मकबूल भट और उसके एक अन्य साथी काला खान को गिरफ्तार कर लिया. मामला दर्ज हो चुका था. तफ्तीश चल रही थी. जांच में मकबूल पर दुश्मन देश का एजेंट होने का आरोप लगा. उस पर मुकदमा चलाए जाने के बाद उसे मौत की सजा सुनाई गई. सजा सुनाए जाने के बाद मकबूल ने अदालत में कहा था कि वो दुश्मन का एजेंट नहीं. लेकिन भारत के कॉलोनियल माइंडसेट का दुश्मन है.
जेल में सुरंग बनाकर भाग निकला था मकबूल
अदालत में मकबूल भट ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया था. वो श्रीनगर जेल में बंद था. लेकिन 1968 में एक दिन अचानक मकबूल अपने दो कैदी साथियों की मदद से जेल में सुरंग बनाकर फरार हो गया. बाद में पुलिस को पता चला कि मकबूल भट जेल से भागकर पाकिस्तान चला गया है.
मकबूल ने रची थी प्लेन हाईजैकिंग की साजिश
जनवरी 1971 में इंडियन एयरलाइंस फोक्कर F27 फ्रेंडशिप एयरक्राफ्ट ‘गंगा’ का अपहरण कर लिया गया. प्लेन हाइजैक करने वाले कश्मीरी युवक थे. जिनकी पहचान हाशिम कुरैशी और अशरफ भट के रूप में हुई. वो दोनों विमान को हाईजैक कर लाहौर जा पहुंचे. प्लेन से यात्रियों और क्रू मेंबर्स को बाहर निकाला गया. और फिर उस प्लेन को आग लगा दी गई. भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने मकबूल भट को इस हाइजैकिंग का मास्टरमाइंड बताया था.
फिर ऐसे गिरफ्तार हुआ था मकबूल
इस घटना के बाद भारत ने पाकिस्तान सरकार से मकबूल भट को गिरफ्तार करने की मांग की. न नुकुर करते हुए पाकिस्तान ने मकबूल भट को अरेस्ट तो किया लेकिन भारत को नहीं सौंपा. फिर 1974 में मकबूल भट को पाकिस्तान सरकार ने रिहा कर दिया. इसके बाद मकबूल भट कुछ समय पाकिस्तान में रहने के बाद भारत आ गया. उसे इस बात अंदाजा नहीं था कि भारतीय एजेंसियां उसके लिए घात लगाए बैठी हैं. जैसे ही वो भारत आया उसे गिरफ्तार कर लिया गया.
तिहाड़ जेल में मकबूल को दी गई थी फांसी
जेकेएलएफ के सरगना मकबूल भट को पहले भारत में सजा सुनाई जा चुकी थी. लिहाजा उसके पकड़े जाने के बाद ये मामला फिर गर्मा गया. मकबूल भट ने तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के यहां अपनी सजा के खिलाफ दया याचिका दायर की. लेकिन याचिका दाखिल होने के बाद मकबूल की रिहाई की मांग को लेकर JKLF के आतंकियों ने बर्मिंघम में इंडियन डिप्लोमैट रविंद्र महात्रे का कत्ल कर दिया. मामला और उलझ गया.
नतीजा ये हुआ कि राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने मकबूल भट की दया याचिका नामंजूर कर दी. 11 फरवरी 1984 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में मकबूल भट को फांसी पर लटका दिया गया. बताया जाता है कि उसकी लाश को भी तिहाड़ में ही दफ्न कर दिया गया था. आगे चलकर जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का सह संस्थापक मकबूल भट कई वर्षों तक कश्मीर के अलगवादियों की प्रेरणा बना रहा. JKLF वाले भारत-पाकिस्तान को नहीं मानते. वो केवल कश्मीर की बात करते हैं और खुद को नेशनलिस्ट बताते हैं.

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