एक साल में ट्रक ड्राइवर कितना रिश्वत देते हैं?

न्यूज डेस्क
किसी सरकारी कागज में कोई त्रुटि ठीक करानी हो या पुलिस में एफआईआर दर्ज करानी हो, बिना लाइसेंस के गाड़ी चलानी हो या ओवरलोड ट्रक लेकर दूसरे शहर जाना हो, यदि आप के पास रिश्वत देने के लिए पैसे हैं तो आप थोड़ी सी मिन्नत और पैसे देकर यह सारे काम करा सकते हैं।
भारत में रिश्वत शब्द बहुत आम है। यहां न तो रिश्वत लेने वालों को हिचक होती है ओर न देने वालों को। कुल मिलाकर लोगों की आदत में शुमार हो गया है कि रिश्वत देने से काम हो जायेगा।
क्या आपको मालूम हैं कि भारत की सड़कों पर फर्राटे भरते ट्रकों के ड्राइवर कितनी रिश्वत देते हैं? तो हम आपको बताते हैं कि
दिन-रात ट्रक चलाते ड्राइवर हर साल कितना रिश्वत देते हैं। ट्रक ड्राइवर पूरे साल में करीब 48 हजार करोड़ रुपया बतौर रिश्वत दे डालते हैं।
पिछले दिनों एक संस्था ने बहुत ही खराब हालत में काम करने वालों ड्राइवरों से जुड़े एक अध्ययन में उनकी जिंदगी के अनछुए पहलुओं को उजागर किया है।
पिछले दिनों स्वयंसेवी संस्था सेवलाइफ फाउंडेशन का एक देशव्यापी सर्वे जारी हुआ जिसमें बताया गया कि ट्रक ड्राइवरों को न सिर्फ दयनीय हालात में काम करना पड़ता है बल्कि रात दिन सड़क पर रहने से उनकी शारीरिक और मानसिक समस्याएं भी बढ़ जाती हैं।
भारत में ट्रक वालों की जीवन स्थितियों पर संभवत: अपनी तरह का यह पहला अध्ययन होगा।
ट्रक ड्राइवर अर्थव्यवस्था में की अहम धुरी होते हैं बावजूद वह बेहद बुरे हालात से गुजरने को विवश हैं। इस अध्ययन में उनके प्रत्यक्ष और परोक्ष शोषण पर भी चिंता जताई गई है और यह भी बताया गया है कि उनके अधिकारों के लिए समवेत स्वरों का अभाव है।
2018-19 के आर्थिक सर्वे में बताया गया है कि देश में सड़कों से करीब 70 प्रतिशत माल ढुलाई ट्रकों के जरिए होती है। एक तरह से ट्रक और उनके ड्राइवर देश की इकोनमी की लाइफलाइन हैं।
“भारत में ट्रक ड्राइवरों की स्थिति” नामक इस सर्वे में देश भर के 1300 से ज्यादा ट्रक ड्राइवरों से बात की गई, जिसमें हर दस में से नौ ड्राइवरों का कहना था कि उन्हें न सिर्फ कम पगार मिलती है बल्कि समय पर भी नहीं मिल पाती और उन्हें कोई सामाजिक सुरक्षा भी हासिल नहीं हैं।
अध्ययन के मुताबिक एक ड्राइवर को औसतन महीने में दस से बीस हजार रुपये तनख्वाह मिल पाती है। कई राज्यों में तो यह न्यूनतम वेतन से भी कम है।

सर्वे में शामिल 84 फीसदी ड्राइवरों का कहना है कि वे अपने किसी परिजन को इस काम में उतरने के लिए नहीं कहेंगे, तो वहीं 53 फीसदी ड्राइवर अपने काम से संतुष्ट नहीं पाए गए।
तमाम समस्याएं झेल रहे ट्रक ड्राइवरों के लिए सबसे बड़ी समस्या है रिश्वत। सर्वे में पाया गया कि ट्रक डाइवरों को हर साल करीब 48 हजार करोड़ रुपये बतौर घूस देने पड़ते हैं। यह घूस यातायात या राजमार्ग पुलिस को दी जाती है। मार्केटिंग एंड डेवलेपमेंट रिसर्च एसोसिएट्स, एमडीआरए ने सेवलाइफ फाउंडेशन के लिए यह ताजा अध्ययन किया है। ट्रांसपेरंसी इंटरनेशनल के लिए वे 2007 में ट्रकों के कारोबार से जुड़े भ्रष्टाचार पर अध्ययन कर चुके हैं।
वैसे अमेरिका से लेकर यूरोप तक दुनिया के अलग अलग हिस्सों में ट्रक ड्राइवरों की आर्थिक, सामाजिक और मानसिक दशाओं पर अध्ययन और शोध होते आ रहे हैं।
सर्वे में भी यह बात सामने आई है कि 40 फीसदी ट्रक ड्राइवरों को अपमान, दुर्व्यवहार, गालीगलौच का डर सताता रहता है। कई बार तो मारपीट की नौबत आ जाती है। हड़ताल हो या जुलूस समारोह आदि, कुछ जरा भी गड़बड़ हो जाए तो भीड़ मरने मारने पर उतारू हो जाती है, लेकिन ट्रक ड्राइवरों की बदहाली के जिम्मेदार उन्हें काम पर रखने वाली कंपनियां और ठेकेदार आदि भी हैं।
सर्वे में शामिल करीब 90 प्रतिशत ड्राइवों ने माना कि ड्राइविंग लाइसेंस लेने से पहले उनकी उचित ट्रेनिंग नहीं हुई थी। आधे से ज्यादा ड्राइवर ऐसे हैं जो बारह बारह घंटे ड्राइव करते हैं। 53 फीसदी ड्राइवरों ने माना कि उन्हें अनिद्रा, मोटापे, पीठ दर्द, जोड़ों में दर्द और गर्दन दर्द की शिकायत रहती है या उन्हें ठीक से नहीं दिखता है।
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अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि अगर एक सुव्यवस्थित और वैध व्यवस्था निर्मित हो तो ट्रक ड्राइवरों को भी उसका हिस्सा बनाया जा सकता है। गाड़ी की मरम्मत, फिटनेट सर्टिफिकेट, पंजीकरण, परमिट नवीनीकरण, ड्राइविंग लाइसेंस से जुड़ी कमियों और दुश्वारियों को दूर किया जान चाहिए। कंपनियों और संस्थानों को भी अपने कर्मचारियों के लिए वित्तीय और स्वास्थ्य सुरक्षा और कल्याण के उपाय सुनिश्चित करने चाहिए।
अध्ययन में कहा गया है कि ट्रक ड्राइवरों को उनके हाल पर छोड़ देना उनके मानवाधिकारों का हनन ही नहीं नागरिक के रूप में उनके अधिकारों की अनदेखी करना भी है।
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