उपेक्षाओं का दंश झेल रही ग्राम पंचायत कापिल, मूलभूत सुविधाएं भी नदारद

अजय सिंह भदौरिया “अजेय”

फतेहपुर । देश की आजादी के तिहत्तर वर्ष पूरे हो चुके है, मगर जनपद के दर्जनों गाँव ऐसे है, जहाँ सरकार आज भी मूलभूत सुविधाओं तक का इंतजाम नही कर पाई है। ऐसे ही विकास के लिये तरस गांवों में एक गांव अमौली विकास खण्ड़ का कापिल है। यहां के निवासी सरकारी सिस्टम को कोसने के सिवा कुछ भी बोंलने से परहेज करते हैं। उनका कहना है कि गांव की विकास योजनाओं के प्रति कुछ भी बोलने का मतलब है ग्राम प्रधान व विकास विभाग से जुडे़ लोगों से विवाद मोल लेना। ऐसी दहशत इससे पहले कभी ग्रामीणों में देखने को नहीं मिली। योगीराज में सच्चाई बंया करने पर जेल का भय ग्रामीणों को भी सता रहा है।

अमौली विकास खण्ड की ग्राम पँचायत कापिल के हालात कुछ ऐसे ही हैं। गाँव के निवासी आज भी स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, शौचालय व पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। ग्रामीणों का कहना है,कि गाँव मे विकास कार्यो के नाम पर आधे-अधूरे कार्य हुए है। जनता के मत से चुने जनप्रतिनिधि चुनाव से पहले झूठे आश्वासन देकर लोगो के वोट बटोर ले जाते है। फिर पाँच वर्ष तक कोई नजर नही आता है। गाँव की मुख्य सड़कें और नालियां कीचड़ से बजबजा रही है, जिसके कारण ग्रामीणों का पैदल निकलना भी दूभर हो रहा है। गांव में समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। बावजूइद इसके जिम्मेदार लोग कुम्भकर्णी नींद में सोए हुए हैं।

गाँव के लोगो की व्यथा सुनने वाला कोई नही है, जिसके कारण गाँव लगातार उपेक्षाओं का शिकार होता जा रहा है। गाँव में विकास के नाम पर कोई कार्य नही हुआ है। गांव के विकास को आवंटित होने वाली धनराशि से केवल जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों ने अपनी जेबें भरी हैं। गाँव पूरी तरह से समस्याओं में डूबा हुआ है। सड़केपूरी तरह से क्षतिग्रस्त है। हैंडपंप खराब पड़े हैं। गांव के रास्तों में जलभराव और गंदगी से उठने वाली संडांध ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है। संक्रामक बीमारियों की फैलने की आशंकायें लोगों की चिंता का कारण हैं। कोई भी सवाल करने पर वह कहते हैं सब ‘‘भगवान भरोसे’’ है।

कापिल गांव में राजीव गांधी स्वजल धारा योजना के अंतर्गत पानी की टँकी का निर्माण कार्य कई वर्ष बीतने के बाद आज भी आधा-अधूरा पड़ा हुआ है। ग्रामीण पेयजल के लिये निर्मित होने वाली पानी टंकी को लेकर शुरू में तो उत्साहित रहे, लेकिन निर्माण कार्य सालों से पूर्ण नहीं होने और टंकी मात्र दिखावा साबित होने पर उनकी निराशा और नाराजगी साफ देखी जा सकती है।

पानी की टंकी की बात करतेे ही ग्रामीणों के तेवर जिम्मेदारों को कोसने वाले होते हैं। उनका कहना है कि अब तक दर्जनों बार विकास खण्ड स्तरीय अधिकारियों के अलावा उच्चाधिकारियों तक समस्या का त्वरित समाधान कराने की शिकायतें की गई, लेकिन उसका कोई अर्थ नहीं निकल सका। अब तो शिकायत भी करने से लोग कतराते हैं। कहते हैं कि जब कुछ होना ही नही ंतो फिर आवाज उठाने का क्या अर्थ है?

गाँव मे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बना हुआ है, लेकिन इस अस्पताल में मरीजो को कभी भी समय पर इलाज नही मिल पाता। दवाइयों का आभाव ही बना रहता है। चिकित्सा स्टाफ में कभी-कभार फार्मेसिस्ट ही अस्पताल में नजर आ जाता है। यहां तैनात चिकित्सको के तो दर्शन दुर्लभ है, जबकि गाँव के आस-पास के गांवों में भयंकर महामारी का प्रकोप फैला हुआ है। इसके बावजूद भी स्वास्थ्य मुहकमा के अलम्बरदार बेलगाम हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जब विभाग का मुखिया अपने अधीनस्थों की सही जानकारी नहीं रखेगा और जनता की शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं होगी तो सरकारी मुलाजिमों का तानाशाही रवैया जारी रहना स्वाभाविक है।

ग्राम पंचायत में शिक्षा के नाम पर प्राथमिक विद्यालय और उच्चतर प्राथमिक विद्यालय मौजूद है, लेकिन विद्यालय में अभी तक मॉडल शौचालय और पेयजल की समुचित व्यवस्था नही है। गांव से जुड़े मजरे कीरतपुर और पंथू सिंह का पुरवा के हालात देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ये गाँव किसी आदिवासी क्षेत्रं का हिस्सा हैं। जिम्मेदार लोग पूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। किसी को भी जनता की दुःख-तकलीफों से कोई वास्ता नही है। अगर जल्द ही शासन-प्रशासन ने जिम्मेदारों लोगो के विरुद्ध कोई ठोस व प्रभावशाली कार्यवाही नही की तो गाँव के हालात और भी बदतर हो जायेंगें।

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