उकसाने की कोशिशों की कालिख

sudheendrakulkarni-shivsena_23_10_2015‘असहिष्णुता” की दो घटनाएं हाल ही में हुईं। एक दिल्ली में और दूसरी मुंबई में। दिल्ली की घटना में जम्मू-कश्मीर के निर्दलीय विधायक इंजीनियर राशिद और मुंबई की घटना में चिंतक सुधींद्र कुलकर्णी के मुंह पर कालिख पोती गई। दोनों को मीडिया में खूब सुर्खियां मिलीं। इन घटनाओं की निंदा भी खूब की गई।

उनकी बात अपनी जगह ठीक भी है। सहिष्णुता होनी चाहिए। भारत वैसा देश है भी नहीं कि यदि किसी पुस्तकालय में हमारे अनुरूप पुस्तकें न हों तो उसे जला दो अथवा यदि कोई व्यक्ति हमारे मत के अनुसार न चले, तो उसे मौत के घाट उतार दो। भारत तो वह देश है, जहां वेदांत का खंडन करने वाले को भी ऋ षि कहा गया और इस जीवन के बाद के जीवन की कल्पना, मूर्ति पूजा आदि को भी अनुचित करार देने वाले को भी अवतार माना। यही नहीं, श्रेष्ठता का निर्धारण भी शास्त्रार्थ से होता था और ऐसा शास्त्रार्थ जिसके तर्कों, तथ्यों और विवेचना को सारा जमाना सांस रोककर सुन रहा था, की निर्णायक भी एक महिला रही है।

ऐसे देश में यह असहमति की पराकाष्ठा ही है कि किसी व्यक्ति का मुंह काला कर दिया जाए। इसके बाद यदि कोई सहनशीलता घटने पर चिंता जताता है, तो इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता लेकिन यह तो तस्वीर का सिर्फ एक पहलू है।

इन दोनों घटनाओं में तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। प्रश्न यह है कि क्या सहिष्णुता एकतरफा ही होती है, क्या इसकी कोई सीमा भी होती है? यदि सीमा है तो कहां तक होगी। जिन लोगों के मुंह काले किए गए वे कौन हैं, उन्होंने ऐसा क्या किया था, जिसके कारण कुछ लोग अपनी जिंदगी, अपना भविष्य दांव पर लगाकर उनका मुंह काला करने के लिए सामने आए।

सुधींद्र कुलकर्णी लालकृष्ण आडवाणी के बेहद करीबी रहे हैं। यह माना जाता है कि आडवाणी राजनीतिक सलाह-मशविरा सुधींद्र से करते हैं। यह धारणा भी है कि आडवाणी कुलकर्णी की सलाह पर ही अपनी पाकिस्तान यात्रा के तहत भारत विभाजन का अभियान चलाने वाले जिन्ना की मजार पर गए। इन दिनों वे ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन नामक एक थिंकटैंक चलाते हैं। उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की पुस्तक का विमोचन कार्यक्रम रखा था।

शिवसेना शुरू से ही इसका विरोध कर रही थी, लेकिन वे नहीं माने। शिवसेना पाकिस्तान के हर शख्स का विरोध करती है। क्रिकेट टीम का भी। शिवसेना का तर्क है कि जो पाकिस्तान हमको सुकून से जीने नहीं दे रहा, आए दिन हिंसा कराता है, सीमा पर घुसपैठ करता है उनके लोगों का सम्मान क्यों? यदि पाकिस्तान के लोगों को भारत में सम्मान कराना है तो वे अपनी सरकार पर दबाव बनाएं। पाकिस्तान सुधरे, हमें चैन से जीने दे, फिर हम भी उसके लोगों को सम्मानजनक स्थान देंगे।

इसके अलावा एक और कारण है। पाकिस्तान से बहुत कलाकार भारत आते हैं। वे फिल्मों में काम करते हैं, टीवी शो करते हैं, कंसर्ट करते हैं, नाम और पैसा कमाते हैं और चले जाते हैं? क्या भारत का कोई गायक वहां जाकर ऐसा कर सकता है? जवाब है नहीं। तब सुधींद्र क्यों उस किताब के विमोचन के लिए उतावले थे, जिसका विमोचन एक बार पाकिस्तान में हो चुका है?

दूसरे सज्जन कश्मीर के निर्दलीय विधायक इंजीनियर राशिद हैं। इन्होंने कश्मीर में बाकायदा बीफ पार्टी का आयोजन किया था। यह पार्टी उस वक्त दी गई, जब देश में गोहत्या और गोमांस खाने पर बहस चल रही थी। कश्मीर कोर्ट ने बाकायदा रोक लगाई, तब राशिद ने गाय समर्थकों को चिढ़ाने के उद्देश्य से बीफ पार्टी रखी। दोनों घटनाएं देश में बहस का कारण बनीं। यह बहस जनसामान्य में उतनी नहीं थी, जितनी मीडिया और सोशल मीडिया में चली। कुछ लोगों को लगा कि देश में लोकतंत्र खत्म हो रहा है। अराजकता आ रही है। लोग गुंडागर्दी से दूसरों को दबाना चाहते हैं।

लेकिन क्या सहिष्णुता की जिम्मेवारी सुधींद्र कुलकर्णी या राशिद की नहीं थी? यदि कुलकर्णी को किसी विदेशी लेखक की पुस्तक का विमोचन रखना था तो वे पाकिस्तान ही क्यों किसी और देश के लेखक की पुस्तक का विमोचन नहीं रख सकते थे? सीमा पर पाकिस्तान की घुसपैठ, आतंकवादियों को दिए गए प्रोत्साहन के कारण हजारों भारतीय सैनिक मारे जा चुके हैं। यदि इसमें जनसामान्य की संख्या जोड़ी जाए तो आंकड़ा लाख के ऊपर जाता है। पाकिस्तान में भी कसूरी ही क्यों, जिनका कार्यकाल भारत के प्रति कटुतात्मक प्रचार के लिए जाना जाता है? सुधींद्र का पाकिस्तान प्रेम नया नहीं है। पर क्या उनका कृत्य शिवसेना को चिढ़ाने वाला नहीं था? क्या इंजीनियर राशिद का कृत्य प्रोवोकेटिव नहीं था?

जो कृत्य केवल चिढ़ाने के लिए किए जा रहे हों, उन पर प्रतिक्रियाएं दूसरी प्रकार की होती हैं। सीमा के बाहर की गई विनय को भिक्षा और सहनशीलता को कायरता कहा जाता है। भारतीयों ने सहनशीलता के कारण कितनी जिल्लत झेली है, यह किसी से छिपा नहीं है। इसे याद रखा जाना चाहिए।

Back to top button