इसलिए बेहद खास हैं पीएम मोदी का बांग्‍लादेश दौरा, जान ले इसके पीछे का ये बड़ा कारण…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार से बांग्लादेश के दौरे पर हैं। इस दौरे के कई राजनीतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक मायने निकाले जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी बांग्‍लादेश में तीन स्थानों पर जाएंगे। इसमें एक है तुंगीपाड़ा स्थित बंगबंधु मेमोरियल यानी बांग्लादेश का संस्थापक मुजीबुर्र रहमान की जन्मस्थली। इसके बाद वे दो मंदिरों में दर्शन के लिए जाएंगे, जिनका अपना ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। इसमें एक है ओराकांडी स्थित मतुआ समुदाय का हरिचांद ठाकुर की स्थली ठाकुड़ बाड़ी और दूसरा है बोड़ि‍शाल का सुगंधा शक्तिपीठ। इसके खास मायने हैं। आइए जानते हैं इन तीनों के बारे में…

तुंगिपारा में बंगबंधु तीर्थ : (ढाका से तुंगिपारा, 113 किमी)

तुंगिपारा मुजीबुर्र रहमान की जन्म स्थली है। बांग्लादेश को वर्ष 1971 में आजाद करवाने वाले बंगबंधु मुजीबुर्र रहमान इसी भव्य मकबरे के अंदर दफन हैं, जिसे बंगबंधु समाधि कहा जाता है। 15 अगस्त 1975 को वे ढाका में धनमंडी की 32 नंबर सड़क के 677 नंबर का मकान में थे। उस वक्त सेना की दो बटालियन ने विद्रोह कर उनके घर पर हमला बोल दिया और उनकी हत्या कर दी थी। यहां बंगबधु संग्राहलय है। पिछली बार के दौरे में प्रधानमंत्री मोदी इस संग्राहलय को देखने गए थे।

ठाकुर बाड़ी : (ढाका से ओराकांडी, 144.6 किमी)

ढाका से लगभग 144.6 किमी दूर ओराकांडी मतुआ समुदाय के संस्थापक हरिचांद ठाकुर का मंदिर है। 1860 में उन्होंने यही से धार्मिक सुधार आंदोलन शुरू किया था। वैष्णव धर्म की ही एक शाखा के रूप में मतुआ संप्रदाय की स्थापना की। इस समुदाय में समाज के उस वर्ग को मान-सम्मान अधिकार दिया जो अछूत माने जाते थे। उन्होंने इन्हें नामसूद्र नाम दिया। हरिचांद ठाकुर के धार्मिक सुधार का उद्देश्य शैक्षिक और अन्य सामाजिक पहुलों के माध्यम से समुदाय का उत्थान करना था।

ओराकांडी यात्रा के मायने

मतुआ समुदाय के सदस्य ठाकुर को भगवान और विष्णु या कृष्ण का अवतार मानते हैं। वर्ष 1947 में विभाजन के बाद इस समुदाय के बहुत से लोग भारत आए गए और बंगाल में 24 परगना, दक्षिण परगना, नदिया, जलपाइगुड़ी, सिलीगुड़ी, कूच बिहार और ब‌र्द्धमान के इलाकों में फैल गए। इनकी आबादी लगभग दो-तीन करोड़ लोग फैले हुए हैं। बंगाल के 30 विधान सीटों पर इनका असर है। माना यह जा रहा है कि पीएम मोदी के दौरे से समुदाय के बड़े हिस्से का समर्थन भाजपा को मिल सकता है।

ओराकांडी में हेलिपैड तैयार

पीएम मोदी करीब आधे घंटे मतुआ मंदिर में रहेंगे। वहां पहुंचने के लिए हेलिपेड तैयार किया जा रहा है।

सात शक्तिपीठ बांग्लादेश में (ढाका से बॉरिशाल, 188.8 किमी)

सुगंधा शक्तिपीठ (सतीपीठ) बांग्लादेश के बॉरिशाल जिले के शिकारपुर में है शक्तिपीठ है। यह शक्तिपीठ देवी सुनंदा को समर्पित और 51 शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है। मान्यता है कि यहां देवी की नाक गिरी थी। देवी सती के आत्म-विसर्जन के बाद, उनके पति शिव ने उनके अवशेषों को उठाया और विनाश का आकाशीय नृत्य किया। इस विनाश को रोकने के प्रयास में, विष्णु ने सती की लाश पर सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल किया, जिससे उनका शरीर अलग हो गया और दुनिया भर के विभिन्न स्थानों पर गिर गया। प्रत्येक स्थान जहां उसके शरीर का एक हिस्सा गिर गया था उसे शक्ति पीठ कहा जाता है। जबकि उनमें से अधिकांश भारत में हैं, सात बांग्लादेश में, तीन पाकिस्तान में, तीन नेपाल में और एक-एक चीन और श्रीलंका में हैं।

शिलाईदह कुटी बाड़ी (ढाका से 169 किमी)

कुश्टिया स्थित शिलाईदह कुटी बाड़ी कविगुरू रवींद्र नाथ टैगोर का पैतृक निवास है। यह घर उनके दादा द्वारकानाथ टैगौर ने बनवाया था। वे भारत के पहले उद्योगपति माने जाते हैं जिन्होंने अंग्रेजों के साथ पार्टनरशिप में कंपनी बनाई थी। वर्ष 1891 से 1901 के बीच वे कई बार यहां आए और लंबी अवधि के लिए रुके। इस मकान में रहते हुए रवींद्र नाथ ठाकुर ने शोनार तोड़ी, कॉथा ओ काहिनी, चैताली जैसी कई कालजयी रचनाएं लिखी।

टैगोर मेमोरियल संग्रहालय का दिया रूप

नोबल विजयी रचना गींताजलि का बड़ा अंश और व इसका अंग्रेजी अनुवाद भी उन्होंने इसी कुश्टिया स्थित शिलाईदह कुटी बाड़ी में रहते हुए किया था। इस पर ही उन्हें नोबल का साहित्य पुरस्कार मिला था। वर्तमान में इस घर को बांग्लादेश पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है और टैगोर मेमोरियल संग्रहालय बना दिया गया है। यहां टैगोर के रोजमर्रा के उपयोग की कई वस्तुएं जैसे उनके बिस्तर, अलमारी और उनके हाउसकोट को यहां प्रदर्शन पर रखा गया है।

कुश्टिया में बाघा जतिन का पैतृक घर (169 किमी)

जतीन्द्रनाथ मुखर्जी, जिन्हें बाघाजतिन (बाघ जतिन) के नाम से जाना जाता है, एक दार्शनिक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म कुष्टिया जिले के गांव कायग्राम में हुआ था, जहां उनका पैतृक निवास स्थित है। बंगाल टाइगर से लड़ने और खंजर से मार गिराने के बाद उन्हें बाघा नाम से जाना जाने लगा। जतिन युगांतर (जुगांतर) पार्टी के पहले कमांडर-इन-चीफ थे, जो 1906 में बंगाल में क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों को प्रशिक्षित करती थी। लॉर्ड कर्जन ने जब विभाजन की घोषणा की तो जतिन ने ही नारा दिया था- आमरा मोरबो, जगत जागवे (हम देश को जगाने के लिए मरेंगे)। उससे प्रेरित होकर कई क्रांतिकारी युवा इस पार्टी में शामिल हो गए। ओडिशा के बालासोर में अंग्रेजों से गोरिल्ला लड़ाई में वे शहीद हो गए थे। 

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