आदित्यनाथ क्यों पड़े सब पर भारी ?

तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए बीजेपी की तरफ से आखिरकार योगी आदित्यनाथ को यूपी का मुख्यमंत्री चुन लिया गया. गोरखपुर से लगातार 1999 से लोकसभा सांसद रहे योगी आदित्यनाथ की छवि एक प्रखर हिंदूवादी नेता की रही है.आदित्यनाथ क्यों पड़े सब पर भारी ?

गोरखपुर के अलावा पूर्वांचल के बाकी इलाकों में भी योगी का दबदबा दिखता है. हिंदू युवा वाहिनी के नाम से योगी आदित्यनाथ एक हिंदूवादी संगठन भी चलाते हैं, जो कई मुद्दों पर विवादों में भी रहता है.

लेकिन, लगता है तमाम विवादों के बावजूद योगी आदित्यनाथ इस रेस में बाकी सभी पर भारी पड़ गए. मुख्यमंत्री पद की रेस में यूं तो कई नाम चल रहे थे, जिनमें अनुभव और बेहतर छवि के आधार पर गृह-मंत्री राजनाथ सिंह और केन्द्रीय संचार मंत्री मनोज सिन्हा का नाम सबसे ऊपर चल रहा था.

माना जा रहा था कि जाति और सामाजिक समीकरण से ऊपर उठकर इस बार बीजेपी विकास के एजेंडे पर आगे बढ़ेगी, लिहाजा सामाजिक समीकरण साधने के बजाए अनुभव को तरजीह देगी. इसी वजह से राजनाथ सिंह और मनोज सिन्हा का नाम आगे चल रहा था.

लेकिन, सियासत शायद इसी को कहते हैं, जिनमें कब किसका पलड़ा भारी पड़ जाए कहना मुश्किल हो जाता है. योगी आदित्यनाथ अचानक रेस में आगे निकल गए.

संघ की पहली पसंद योगी

 

योगी आदित्यनाथ के नाम की घोषणा होने के बाद इलाहाबाद में खुशियां मनाते बीजेपी कार्यकर्ता.

योगी आदित्यनाथ संघ की पसंद माने जा रहे हैं. योगी आदित्यनाथ की हिंदूवादी नेता की छवि और भगवा वस्त्र संघ के हिंदूत्व के एजेंडे से मेल खाता है. लिहाजा संघ ने योगी के नाम पर मुहर लगा दी.

दरअसल बीजपी को इस बार विधानसभा चुनाव में एकतरफा जीत मिली थी जिसमें समाज के सभी वर्ग के लोगों का समर्थन हासिल था. लिहाजा, बीजेपी की तरफ से सामाजिक समीकरण बैठाने की कोशिश भी की गई है.

बीजेपी के रणनीतिकारों को लगा कि योगी के मुख्यमंत्री बनने से न केवल सवर्ण जातियों में बल्कि पिछड़े तबके में भी किसी को आपत्ति नहीं होगी. योगी खुद ठाकुर जाति से आते हैं, जबकि उनका हिंदुत्व का एजेंडा ब्राम्हणों के अलावा पिछड़े तबके को भी उनसे जोड़ता है.

हालांकि, ऐसा प्रधानमंत्री मोदी के उस सिद्धांत से मेल नहीं खाता जिसमें वो बार-बार जाति से उपर उठकर विकास के मुद्दे को सामने लाने की बात करते हैं.

योगी आदित्यनाथ को बीजेपी के यूपी प्रभारी ओम माथुर और संगठन मंत्री सुनील बंसल का भी समर्थन मिल गया. यहां तक कि बीजेपी के यूपी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने भी आखिर में योगी का ही समर्थन कर दिया. लिहाजा, योगी बाकी सब पर भारी पड़ गए.

दूसरी तरफ, शनिवार सुबह तक रेस में सबसे आगे चल रहे केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा की साफ-सुथरी छवि, मोदी सरकार में उनका बेहतर परफॉर्मेंस सब जातिय समीकरण के स्पीड ब्रेकर में फंस कर रह गया.

विधानमंडल दल की बैठक से पहले दिन में दिल्ली में अचानक तेज हुई सियासी हलचल ने मनोज सिन्हा को रेस से बाहर कर दिया.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से यूपी बीजेपी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और संगठन मंत्री सुनील बंसल ने मुलाकात की. सूत्रों के मुताबिक, इस मुलाकात के दौरान इन दोनों की तरफ से मनोज सिन्हा के नाम का विरोध किया गया.

मुख्यमंत्री की दौड़ से क्यों बाहर हुए मनोज सिन्हा

 

खासतौर से भूमिहार जाति से आने वाले मनोज सिन्हा को लेकर इनका तर्क था कि इतनी कम आबादी वाली जाति से आने के बावजूद उन्हें कमान देकर अच्छा संदेश नहीं दिया जा सकता.

इन नेताओं की तरफ से पार्टी आलाकमान को बार-बार ये समझाने की कोशिश की गई कि यूपी के भीतर मनोज सिन्हा की ताजपोशी से सामाजिक समीकरण नहीं साधा जा सकता. बीजेपी के यूपी प्रभारी ओम माथुर भी मनोज सिन्हा के मुख्यमंत्री बनाए जाने के फैसले के साथ नहीं खड़े थे.

आखिरकार मोदी-शाह की जोड़ी की पसंद होने के बावजूद मनोज सिन्हा जाति के मकड़जाल में उलझकर रह गए और योगी आदित्यनाथ बाजी मार ले गए.

बीजेपी की तरफ से दो उपमुख्यमंत्री बनाकर भी सामाजिक समीकरण को ही साधा जा रहा है. पिछड़े तबके से आनेवाले केशव प्रसाद मौर्य और ब्राम्हण समुदाय से आने वाले दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने सामाजिक समीकरण को ही बाकी हर मुद्दे पर तरजीह दे दी है.

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