आखिर क्यों रूस कोरोना के बारे में फैला रहा है झूठ?

न्यूज डेस्क
कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में दहशत का माहौल है। इटली में जिस तरह हर रोज सैकड़ों लोगों की मौत हो रही है, उससे पूरी दुनिया में दहशत का माहौल है।
एक ओर पूरी दुनिया कोरोना वायरस से दहशत में हैं तो वहीं रूस पर आरोप लग रहा है कि वह इस महामारी का फायदा उठाकर फेक न्यूज और गलत जानकारी के जरिए पश्चिमी देशों में अशांति को भड़का रहा है? यह आशंका रूस मीडिया पर नजर रखने वाले यूरोपीय पर्यवेक्षकों ने व्यक्त की है।
दरअसल रूस की नई मीडिया संस्था स्पूतनिक ने दावा किया है कि नया कोविड-19 कोरोना वायरस यूरोपीय देश लातविया में “बहुत ही स्मार्ट जीवविज्ञानियों और फार्मासिस्ट्स” ने पैदा किया। वहीं रूसी सत्ता प्रतिष्ठान क्रेमलिन से जुड़े अन्य सूत्रों का कहना है कि इस वायरस को ब्रिटिश सेना के पोर्टोन डाउन ठिकाने पर तैयार किया गया।
रूस पर नजर रखने वाले यूरोपीय आयोग के पर्यवेक्षकों ने 80 अलग-अलग रिपोर्टों का विश्लेषण किया है जो रूस की सरकारी मीडिया वेबसाइटों पर प्रकाशित की गईं और उनमें कोरोना वायरस को लेकर झूठी और गुमराह करने वाली जानकारी थी। इन्हें लिखने वाले मीडिया प्लेटफॉर्म और लेखकों के क्रेमलिन से नजदीकी संबंध हैं।
जिस तरह से रूस में इस तरह की खबरे लिखी जा रही है उससे सवाल उठ रहा है कि क्या यह सोचे समझे तरीके से शुरू की गई कोई मुहिम है या फिर रूस और पश्चिमी जगत के बीच चलने वाले प्रोपेगैंडा युद्ध का हिस्सा है।
भ्रम फैलाने की हो रही कोशिश
वेबसाइट EU vs. Disinfo पर “क्रेमलिन और कोरोना वायरस पर गलत सूचना” शीर्षक से प्रकाशित लेख में रूसी रिपोर्टों के अंश पढ़े जा सकते हैं। इन रिपोर्टों को पढ़ कर लगता है कि वे आपस में विरोधाभासी हैं। उदाहरण के तौर पर क्रूेमलिन का नजदीकी माने जाने वाला एक ई जर्नल ‘द ओरिएंटल रिव्यू’ लिखता है-“जब अफरा तफरी खत्म होगी तो कोविड-19 से मारे गए लोगों की संख्या किसी सामान्य फ्लू से मरने वाले लोगों से भी कम होगी।”
वहीं एक रूसी राष्ट्रवादी और ऑर्थोडोक्स चर्च के खुले समर्थक एलेक्सांडर डुगिन ने एक अन्य रूसी ई जर्नल में बिल्कुल विपरीत दावा किया। डुगिन ने कहा कि जब यह वायरस दुनिया भर में “अपना विजय मार्च पूरा करेगा” तो यह मौजूदा विश्व व्यवस्था को ध्वस्त कर देगा।
सवाल उठता है कि क्या इस तरह के विरोधाभासी दावों के पीछे कोई मकसद है? यूरोपीय संघ के पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसका मकसद यूरोपीय नागरिकों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा कर उनमें “बिखराव और अविश्वास” के बीज बोना है।
वेब मीडिया डीडब्ल्यू हिंदी के अनुसार यूरोपीय संघ में विदेश मामलों और सुरक्षा नीति प्रमुख के मुख्य प्रवक्ता पीटर स्टानो का कहना है, “हम देख रहे हैं कि यूरोपीय संघ के बाहर से आ रही गलत सूचनाओं में बहुत इजाफा हुआ है। इनमें से कुछ को रूस और रूस समर्थक स्रोतों ने फैलाया है।” उन्होंने कहा कि सिर्फ रूस ही ऐसी सूचनाओं का स्रोत नहीं है। उनके मुताबिक जहां कहीं से भी ये गलत सूचनाएं फैलाई जा रही हैं, “उनसे लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ रही हैं।”
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रूस ने इन आरोपों को किया खारिज
रूस ने अपने ऊपर लग रहे इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने फाइनेंशियल टाइम्स में छपी इस रिपोर्ट को खारिज किया है कि रूस जानबूझ कर गलत जानकारियां फैला रहा है। उन्होंने कहा, “हम बेबुनियाद दावों की बात कर रहे हैं। स्थिति को मद्देनजर रखते हुए ये दावे रूस विरोधी रवैये का नतीजा दिखते हैं।” उन्होंने कहा कि इन दावों को साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किए गए हैं।
प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव के इनकार को रूस के सरकारी टीवी चैनल रशिया टुडे (आरटी) ने भी समर्थन किया है। आरटी की वेबसाइट पर नेबोज्सा मालिच का एक लेख प्रकाशित किया गया, जिन्हें सर्बियन-अमेरिकन पत्रकार बताया गया। इस लेख में कहा गया है, “जब सब लोग विफल हो जाते हैं तो वे रूस की आलोचना करने लगते हैं। लगता है कि यूरोपीय संघ इसी तरह कोरोना महामारी पर अपनी नाकामी को छिपाने की कोशिश कर रहा है। ”
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तो क्या सच में इसके पीछे रूस है?
रूस के इनकार के बाद फेक न्यूज को देखते हुए सवाल यह है कि क्या रूस यूरोपीय लोकतंत्रों पर हमले लिए कोरोना वायरस का इस्तेमाल कर रहा है? ब्रिटिश फेक न्यूज एक्सपर्ट बेन निम्मो लगातार रूसी मीडिया पर नजर रखते हैं। वह नहीं समझते कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने निजी रूप से ऐसा करने को कहा होगा। उन्हें लगता है कि यह पश्चिमी देशों के खिलाफ रूस की नियमित प्रोपेगैंडा मुहिम का ही हिस्सा है।
वेब मीडिया डीडब्ल्यू हिंदी के अनुसार, फेक न्यूज एक्सपट निम्मो कहते हैं कि मलेशियन एयरलाइंस की फ्लाइट एमएच17 को गिराए जाने या फिर क्रीमिया को यूक्रेन से तोड़कर रूस में मिलाने की बात अलग थी। तब रूसी मीडिया वही लिख रहा था जो सरकार उससे लिखवा रही थी। लेकिन कोरोना वायरस से पैदा स्थिति को वह अलग मानते हैं। वह कहते हैं कि स्पूतनिक और आरटी जैसे मीडिया संस्थानों का मकसद सिर्फ पश्चिमी दुनिया की छवि को खराब करना है, भले ही मुद्दा कुछ भी हो।
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