आइए जानते हैं पंचक के प्रकार नियम और प्रभाव…

हर वर्ष दो नवरात्रि व्रत रखे जाते हैं। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना एक चैत्र मास में और दूसरा शारदीय मास में की जाती है। हिन्दू धर्म में चैत्र नवरात्रि के विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होगा। इस वर्ष चैत्र प्रतिपदा तिथि 22 मार्च 2023, बुधवार के दिन पड़ रहा है। लेकिन चैत्र नवरात्रि से कुछ दिन पहले पंचक भी शुरू हो रहा है, जिसमें सभी आध्यात्मिक कार्य रोक दिए जाते हैं।

ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि पंचक के दौरान किए गए कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है और इन 5 दिनों को बहुत ही अशुभ माना जाता है। ऐसे में चैत्र नवरात्रि से पहले और पंचक के दौरान साधकों को कुछ विशेष नियमों का ध्यान जरूर रखना चाहिए।

चैत्र मास में पंचक की अवधि

हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास में पंचक 19 मार्च 2023, रविवार के दिन सुबह 11 बजकर 17 मिनट से शुरू होगा और इसका अंत 23 मार्च 2023, शुक्रवार के दिन दोपहर 02 बजकर 08 मिनट पर होगा। रविवार के दिन पंचक शुरू होने के कारण इसे रोग पंचक के नाम से जाना जाएगा। ऐसे में साधकों को पंचक की अवधि में बहुत ही सतर्क रहने की आवश्यकता है, क्योंकि इस अवधि में अनहोनी का भय बना रहता है।

पंचक की अवधि में भूलकर भी ना करें यह कार्य

ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है की पंचक के दौरान घर में बाहर से लकड़ी नहीं लानी चाहिए और ना ही लकड़ी से बड़ा कोई भी सामान लाना चाहिए। इस दौरान घर की छत डलवाना भी अशुभ माना जाता है। साथ ही दक्षिण दिशा में यात्रा करने से बचना चाहिए। यह भी बताया गया है कि पंचक के दौरान मकान पर रंग का काम भी नहीं करवाना चाहिए। इससे दोष लगने का खतरा बढ़ जाता है।

पंचक के दौरान नक्षत्रों का प्रभाव

शास्त्रों में बताया गया है कि जब चंद्र ग्रह धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण में और शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद व रेवती नक्षत्र के चारों चरण में भ्रमण करता है, उसे पंचक काल कहा जाता है। धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय बढ़ जाता है। शताभिषा में कलह और वाद-विवाद का खतरा बढ़ता है, पूर्वाभाद्रपद में रोग और उत्तराभाद्रपद में धन के रूप में दंड का भय रहता है। साथ रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना बढ़ जाती है।

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