असहिष्णुता पर आमने-सामने

sonia_modi_02_11_2015असहिष्णुता के सवाल पर एनडीए सरकार को घेरने के प्रयासों के बीच पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली और फिर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पलटवार किया। रविवार को जेटली ने अपने फेसबुक पोस्ट में कहा कि 2002 (यानी गुजरात दंगों के बाद) से प्रधानमंत्री वैचारिक असहिष्णुता से सबसे ज्यादा पीड़ित रहे।

सोमवार को बिहार की एक चुनाव सभा में मोदी ने कांग्रेस को 1984 के सिख विरोधी दंगों की याद दिलाई। कहा कि इंदिरा गांधी की हत्या के अगले दिन कांग्रेस राज में निर्दोष सिख मारे गए। लेकिन आज वही कांग्रेस असहिष्णुता की बात कर रही है।

मोदी के आक्रामक तेवर के पहले यह खबर आ चुकी थी कि देश में बढ़ती कथित असहिष्णुता के मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रपति से मिलने का कार्यक्रम बनाया है। यह खबर भी आई कि सोनिया गांधी ने कुछ उसी अंदाज में नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन तक असहिष्णुता विरोधी मार्च का नेतृत्व करने का मन बनाया है, जैसा उन्होंने भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के मुद्दे पर किया था।

इन बातों की पृष्ठभूमि अब खासी लंबी हो चुकी है। अनेक साहित्यकारों, कलाकारों, फिल्मकारों, शिक्षाशास्त्रियों आदि ने एनडीए सरकार के तहत देश में असहिष्णुता बढ़ने की शिकायत करते हुए या तो अपने पुरस्कार लौटा दिए हैं अथवा बयान जारी किए हैं। ऐसी हर गतिविधि को कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों का समर्थन मिला है।

लेकिन अब तक यह पीछे से था। अब कांग्रेस ने सीधे इस मुद्दे को अपने हाथ में लेने का इरादा दिखाया है। तो लाजिमी ही था कि भारतीय जनता पार्टी की तरफ से इसका पुरजोर जवाब आता। भाजपा और उसके समर्थक संगठनों एवं बुद्धिजीवियों ने इस सवाल पर अपना तर्क विकसित किया है।

उसका सार है कि 2014 में आए जनादेश को कांग्रेस, वाम दल और उसकी समर्थक जमातें पचा नहीं पाईं। वे मौके की तलाश में थीं। तर्कवादी बुद्धिवीजी एमएम कलबुर्गी की हत्या और दादरी कांड से उन्हें अवसर मिल गया। उसका लाभ उठाकर उन्होंने सरकार विरोधी अभियान छेड़ दिया। मूडी”ज जैसी अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी और कारोबार जगत के कुछ बड़े नाम भी उनके इस प्रचार के प्रभाव में आ गए हैं।

भाजपा का कहना है कि इससे देश बदनाम हो रहा है। विकास के रास्ते में रुकावटें खड़ी हो रही हैं। जेटली ने कहा कि ऐसे प्रचार में वे लोग ही शामिल हैं, जिन्होंने दशकों से भाजपा के प्रति वैचारिक असहिष्णुता अपनाई हुई है। इन्हीं लोगों ने गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी को कलंकित करने की कोशिश की।

वित्त मंत्री ने कहा कि ताजा दुष्प्रचार की साजिश रचने वाले वो लोग हैं, जिन्होंने अपने दबदबे के दौर में विश्वविद्यालयों तथा शैक्षणिक-सांस्कृतिक संस्थानों में वैकल्पिक नजरियों को कभी आगे नहीं बढ़ने दिया। ये ऐसी बातें हैं, जिनका जवाब देना असहिष्णुता के प्रचार अभियान में शामिल लोगों के लिए मुश्किल हो सकता है। दरअसल अब इस मुद्दे पर उनके घिरने की बारी है।

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