यूं ही नहीं दी जाती है अफलातून की मिसाल

अफलातून यूनानी दार्शनिक थे। उनके पास हर दिन कई विद्वानों का जमावड़ा लगा रहता था। सभी उनसे कुछ न कुछ ज्ञान प्राप्त करके जाया करते थे। लेकिन अफलातून खुद को कभी भी ज्ञानी नहीं मानते थे। वे हमेशा कुछ न कुछ नई बात सीखने को उत्सुक रहते थे।एक दिन उनके एक मित्र ने कहा, आपके पास दुनिया के बड़े-बड़े विद्वान कुछ न कुछ सीखने और जानने आते हैं और आपसे बातें करके अपना जन्म धन्य समझते हैं। किंतु आपकी एक बात मेरी समझ में नहीं आती।

ध्यान रखिए! दूसरे का भाग खाने पर, मिलती है ऐसी सजा

यूं ही नहीं दी जाती है अफलातून की मिसाल

मित्र की बात पर अफलातून बोले, तुम्हें किस बात पर शंका है? इस पर मित्र बोला, आप स्वयं इतने बड़े दार्शनिक और विद्वान हैं, लेकिन फिर भी आप दूसरे से शिक्षा ग्रहण करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, वह भी बड़े उत्साह और उमंग के साथ।उससे भी बड़ी बात यह है कि आपको साधारण व्यक्ति से सीखने में भी झिझक नहीं होती। आपको सीखने की भला क्या जरूरत है? कहीं आप लोगों को खुश करने के लिए उनसे सीखने का दिखावा तो नहीं करते?मित्र की बात पर अफलातून जोर से हंसे और फिर उन्होंने कहा, ‘हर किसी के पास कुछ न कुछ ऐसी चीज है जो दूसरों के पास नहीं। इसलिए हर किसी को हर किसी से सीखना चाहिए।

संक्षेप में

ज्ञान अनंत है इसकी कोई सीमा नहीं है। इसलिए जब तक जिंदा हैं सीखते रहिए। यही आगे बढ़ने का फलसफा है।

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