अगर आप में हैं ये बातें तो पड़ सकता है प्रेत आत्मा का साया
क्या सृष्टि में नकारात्मक ताकतों का वास होता है? ये प्रश्न संभवतः उतना ही पुराना है जितना इंसान का अस्तित्व। विभिन्न धर्मों में शैतान अथवा ऐसी ताकतों का उल्लेख किया गया है जो शुभ कार्यों में बाधा पहुंचाती हैं या किसी अनिष्ट को अंजाम देती हैं। यह शोध का विषय हो सकता है कि इस मान्यता में किस हद तक सच्चाई है। ज्योतिष में भी ऐसी ताकतों की ओर इशारा किया गया है। कुंडली में कुछ खास तरह के योग होने से मनुष्य इन नकारात्मक शक्तियों से प्रभावित हो सकता है।
– ज्योतिष की मान्यता है कि अगर जातक की कुंडली में लग्न, गुरु, धार्मिक भाव और द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रह अपना प्रभाव डालें तो ऐसा मनुष्य नकारात्मक ताकतों से प्रभावित हो सकता है। उसके जीवन में ऐसे अवसर आ सकते हैं जब वह उनके असर में आ जाए।
– बृहस्पति को पितृदोष, शनि को यमदोष का कारक माना जाता है। इसी प्रकार शुक्र जलदोष, मंगल को शाकिनी दोष, राहू सर्प तथा प्रेत दोष का कारक होता है।
– शनि, राहू, केतु का संबंध ऐसी घटनाओं से होता है। ये जातक की मानसिक अवस्था को प्रभावित कर सकते हैं।
– श्वेत वर्ण चंद्रमा का होता है। ये मन का कारक है। इसका शत्रु राहू है। पुराने समय से हमारे समाज में यह परंपरा है कि सफेद रंग की चीजें जैसे पेड़ा, दूध, मिठाई, चीनी, खीर आदि का सेवन करने के बाद अनजान रास्ते पर, सुनसान जगह या चौराहे पर नहीं जाना चाहिए। अगर जाना जरूरी हो तो चुटकी भर नमक का सेवन करना चाहिए।
– सफर से पहले या चौराहे आदि पर दूध पीकर नहीं जाना चाहिए। ऐसी सामाजिक मान्यता है कि दूध पीकर जाने वाले व्यक्ति पर दुष्ट आत्माओं का प्रभाव जल्दी होता है।
– इसके अलावा दूषित स्थान, सुनसान कुआं, बावड़ी, श्मशान, जंगल, देर रात, दोपहर, जहां अनेक दुर्घटनाएं हो चुकी हों ऐसा स्थान आदि से भी दूर रहना चाहिए। इन स्थानों व समय विशेष पर नकारात्मक शक्तियां अधिक प्रबल होती हैं।
– कहते हैं कि जिस व्यक्ति पर ऐसी आत्मा का साया होता है, सबसे पहले उसकी आंखें प्रभावित होती हैं। आमतौर पर उसकी आंखों की पुतलियां सीधी हो जाती हैं। वहीं, आंखों का रंग भी लाल हो जाता है। हालांकि तेज गर्मी और नेत्र रोगों में भी ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं।
– अशुभ व अपवित्र स्थानों के अलावा जब मन भी पापयुक्त विचारों अथवा राहू, केतु के नकारात्मक प्रभाव से पीड़ित हो तो व्यक्ति का मनोबल कमजोर हो जाता है। ऐसे में उसे नकारात्मक शक्तियां प्रभावित कर सकती हैं।
– अगर किसी महिला की कुंडली के सातवें भाव में मंगल, शनि, राहू अथवा केतु की युति हो तो उसे दुष्ट आत्माएं प्रभावित कर सकती हैं।
– कुंडली के पंचम भाव में सूर्य व शनि की युति बने, सातवें भाव में चंद्रमा कमजोर हो, 12वें भाव में गुरु बैठा हो तो ऐसा मनुष्य प्रेतबाधा से पीड़ित हो सकता है।
– अगर गुरु शनि, राहू या केतु से संबंध रखे तो वह उनसे नकारात्मक वृत्ति ग्रहण करता है। ऐसा गुरु अपना शुभ प्रभाव खो देता है। ऐसे जातक को दुष्ट आत्माएं परेशान कर सकती हैं।
– जिसका मनोबल मजबूत होता है, जो अपने इष्ट देव में गहरी आस्था रखता है, जो इष्ट मंत्र का जाप करता है, जो हनुमानजी का भक्त है, जो सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करता है, जो समय, स्थान के अनुसार यात्रा करता है, ऐसे व्यक्ति को प्रेतबाधा परेशान नहीं करती।