अक्षय की फिल्म केसरी में दिखाई गई ये 4 चीजें हैं गलत

नई दिल्ली । बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार की फिल्म केसरी बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन कर रही है पर सारागढ़ी के बैटल पर आधारित फिल्म केसरी में कुछ चीजें ऐसी हैं जिनका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है. बल्कि मेकर्स ने फिल्म को ज्यादा दिलचस्प बनाने के लिए फिल्म को मनगढ़ंत तरीके से बना दिया है। बता दें , फिल्म ने पहले ही दिन 21 करोड़ रुपये की कमाई के साथ खाता खोला है और अब भी यह बॉक्स ऑफिस पर सरपट दौड़ रही है. सच्ची कहानी पर आधारित होने की बात है तो जानकारों का कहना है कि 21 सिख जवानों की 10 हजार हमलावरों से जंग की इस कहानी को बहुत हद तक फिल्मी या काल्पनिक बना दिया गया है,ब्रिटिश इंडियन आर्मी की 36 सिख रेजीमेंट के 10 जवानों की 6-7 घंटे चली इस लड़ाई की कहानी में कई लूपहोल्स हैं.
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इसहार सिंह अकेले नहीं गए थे
जैसा कि फिल्म में दिखाया गया है कि सारागढ़ी पर बेहिसाब रिसर्च कर चुके कैप्टन जय सिंह सोहल का कहना है कि हवलदार इसहार सिंह को कभी भी उस जगह पर अकेले भेजा ही नहीं गया था बता दें कि फिल्म केसरी में अक्षय कुमार ने हवरदार इसहार सिंह का किरदार निभाया है। सोहल ने बताया पूरी की पूरी 36 सिख रेजीमेंट को 1895 में उत्तर पश्चिमी फ्रंट पर जाने का आदेश मिला था उनसे कहा गया था कि वे दिसंबर 1896 तक वहीं पेशावर में रुकें इसहार सिंह अपनी पूरी टीम के साथ वहां गए थे न कि यूं ही घूमते हुए अकेले वहां पहुंच गए थे।
पगड़ी का रंग केसरी नहीं था
अक्षय कुमार ने जो केसरी रंग की पगड़ी फिल्म में पहनी हुई है उस केसरी का तो खालसा रंग है पर उसका रंग दरअसल केसरी दिखाया गया है ,सोहल ने बताया कि पगड़ी भी बाकी पोशाक की तरह खाकी रंग की हुआ करती थी, इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि वहां केसरी पगड़ी पहनने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।
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बातचीत डायलॉग और भी फर्जी
जानकारी के मुताबिक सारागढ़ी पोस्ट पर जंग से पहले इलाकाई लोगों के लिए मस्जिद बनाए जाने और जंग के बीच में हमलावरों के साथ हुई बातचीत भी कपोल कल्पना मात्र है सोहल ने बताया कि जवानों के पास इतना वक्त ही नहीं था कि वे जाकर मस्जिदें बनाते उन्हें और कई बड़ी जिम्मेदारियां दी गई थीं जो उन्हें पूरी करनी थी।
पठानों से बातचीत की इजाजत ही नहीं थी
कहानी में जैसा कि दिखाया गया है कि अक्षय कुमार और बाकी जवान अक्सर पठानों से बातचीत करते नजर आते हैं विशेषज्ञों की मानें तो जवानों को पठानों से बातचीत की इजाजत की नहीं थी उन्हें जो निर्देश दिए जाते थे वे बहुत स्ट्रिक्ट हुआ करते थे और उन्हें उन निर्देशों का पालन करना होता था।

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